किसी नए कवि की रचना से गुज़रते हुए अक्सर उम्मीद की जाती है कि उसमें कुछ नया होगा लेकिन मनीष श्रीवास्तव की कविताओं के साथ केवल नए होने का भाव नहीं है, यहाँ विविधता है। अपने होने में पूरी विनम्रता के साथ लेकिन रचनात्मक रूप से लगभग अतार्किक। ये कविताएँ कोई नई ज़मीन तोड़ने का दावा नहीं करतीं, कोई नारेबाज़ी नहीं करतीं, चौंकाती भी नहीं—बस, अपने कविता होने को आश्वस्त करती हैं और यह भी कि इन रचनाओं में पुरखे शामिल हैं।

सांस्कृतिक तत्सम शब्दावली और मीर, ग़ालिब, पंत की भाषा परम्परा के रास्ते से ये रचनाएँ ग्लोबल कविता की अवधारणा में प्रवेश पाती हैं। यहाँ हर रचना के साथ कोई एक छाया चलती है—भाषा, काल और कहन के एक ऐसे पृष्ठ-तनाव को फिर-फिर उजागर करती हुई, अपने पूरे संस्कार और संवेदना के साथ, जो किसी एक रचनाकार के लिए इन दिनों असम्भव है।

मनीष पूरे विस्तार के साथ शब्दों को बरतते हैं, एक चौकन्नेपन के साथ, कहीं-कहीं अतिरिक्त सावधानी के साथ भी, लेकिन बाज़ार की माँग के अनुसार तो कुछ भी नहीं। रचना का होना बचा रहे, इसका निर्वाह तो हरेक रचनाकार स्वाभाविक रूप से करता है, लेकिन यह

होना यहाँ किसी अनुशासन की तरह नहीं है।

इन रचनाओं में शब्दों का पड़ोस है जीवन और अन्ततः प्रेम जहाँ ये कविताएँ सहज रूप से खुलती चली जाती हैं।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 174p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Manish Shrivastav

Author: Manish Shrivastav

मनीष श्रीवास्तव

जन्म : 17 सितम्बर, 1974; मुंगेली, ज़िला—बिलासपुर (छत्तीसगढ़)।

शिक्षा : कम्प्यूटर शिक्षा में पत्रोपाधि।

कला जगत से नाता : प्राथमिक स्कूल से ही नाट्य-कला एवं मंचन से सम्बन्ध।

मुम्बई फ़िल्म जगत में स्थापित लेखक संदीप श्रीवास्तव जी के साथ सह-लेखन कार्य।

कविता लेखन : नब्बे के दशक से।

प्रकाशित कृति : ‘अवलंबन’ पहली काव्य-पुस्तक।

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