Anaro

Author: Manjul Bhagat
Edition: 2014, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Anaro

''कहाँ गया गंजी का बाप?...दिल डूब रहा है...अनारो, तू डूब चली...उड़ चली तू...अनारो, उड़ मत...धरती? धरती कहाँ गई?...पाँव टेक ले...हिम्मत कर...थाम ले रे...नन्दलाल! हमें बेटी ब्याहनी है!...यहाँ तो दलदल बन गया!...मैं सन गई पूरी की पूरी...हाय! नन्दलाल...गंजी...छोटू!'' महानगरीय झुग्गी कॉलोनी में रहकर कोठियों में खटनेवाली अनारो की इस चीख़ में किसी एक अनारो की नहीं, बल्कि प्रत्येक उस स्त्री की त्रासदी छुपी है जो आर्थिक अभावों, सामाजिक रूढ़ियों और पुरुष अत्याचार के पहाड़ ढोते हुए भी सम्मान सहित जीने का संघर्ष करती है। सौत, ग़रीबी और बच्चे; नन्दलाल ने उसे क्या नहीं दिया? फिर भी वह उसकी ब्याहता है, उस पर गुमान करती है और चाहती है कि कारज-त्यौहार में वह उसके बराबर तो खड़ा रहे। दरअसल अनारो दु:ख और जीवट से एक साथ रची गई ऐसी मूरत है, जिसमें उसके वर्ग की सारी भयावह सच्चाइयाँ पूँजीभूत हो उठी हैं।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 1985
Edition Year 2014, Ed. 2nd
Pages 102p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18 X 12 X 0.5
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Manjul Bhagat

Author: Manjul Bhagat

मंजुल भगत

जन्म: 22 जून, 1936; मेरठ (उत्तर प्रदेश)।

8 उपन्यास व 8 कहानी-संग्रह प्रकाशित।

अनेक रचनाएँ भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित। हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ‘साहित्यकार सम्मान’ से अलंकृत की गईं और ‘खातुल’ उपन्यास पर ‘कृति पुरस्कार’ दिया गया।

निधन : 31 जुलाई, 1998; दिल्ली।

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