Agaria-Hard Back

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9788126712953
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'अगरिया' शब्द का अभिप्राय सम्‍भवत: आग पर काम करने वाले लोगों से है अथवा आदिवासियों के देवता, अघासुर से जिनका जन्म लौ से हुआ माना जाता है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलानेवाले और लोहारी करनेवाले लोग हैं जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाते हैं लेकिन 'अगरिया क्षेत्र' को डिंडोरी से लेकर नेतरहाट तक रेखांकित किया जा सकता है। गोंड, बैगा और अन्य आदिवासियों से मिलते-जुलते रिवाजों और आदतों के कारण अगरिया की जीवन-शैली पर बहुत कम अध्ययन किया गया है। हालाँकि उनके पास अपनी एक विकसित टोटमी सभ्यता है और मिथकों का अकूत भंडार भी, जो उन्हें भौतिक सभ्यता से बचाकर रखता है और उन्हें जीवनी-शक्ति देता है। इस पुस्तक के बहाने यह श्रेय प्रमुख नृतत्‍त्‍वशास्त्री वेरियर एलविन को जाता है कि उन्होंने अगरिया जीवन और संस्कृति को इसमें अध्ययन का विषय बनाया है। एलविन के ही शब्दों में, ‘मिथक और शिल्प का संगम ही इस अध्ययन का केन्द्रीय विषय है जो अगरिया को विशेष महत्त्व प्रदान करता है।‘ इसके विभिन्न अध्यायों में अगरिया इतिहास, संख्या और विस्तार, मिथक, टोना-टोटका, शिल्प, आर्थिक स्थिति और पतन की चर्चा एवं विश्लेषण के माध्यम से एक वैविध्यपूर्ण संस्कृति, जिसका अब पतन हो चुका है, की आश्चर्यजनक आन्‍तरिक झाँकी प्रदान की गई है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2007
Pages 331p
Price ₹450.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Veriar Elwin

Author: Veriar Elwin

वेरियर एलविन

सन् 1902; डोवर, इंग्लैड में जन्म।

वेरियर एलविन जब ऑक्सफ़ोर्ड में छात्र थे, तब उन्होंने भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि दिखाई थी। वह एक धर्मनिष्ठ ईसाई थे और उन्होंने एक मिशनरी के रूप में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे 1927 में एक मिशनरी के रूप में भारत आए तथा पुणे में क्रिश्चियन सर्विस सोसाइटी में शामिल हुए।

एलविन इंग्लैंड से भारत मुख्यतः मिशनरी कार्य के लिए आए थे मगर अपने अन्तर्द्वन्‍द्वों, गांधी जी के विचारों और सान्निध्य, जनजातियों की स्थिति, मिशनरियों के कार्यों के तरीक़ों को देखकर उनके विचार बदल गए। फिर उन्होंने जनजातियों के बीच रहकर उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करने का निश्चय किया और इसी दौरान अपने विख्यात मानवशास्त्रीय शोध-कार्य किए।

अपने शोध-कार्यों के कारण वह भारतीय जनजातीय जीवन-शैली और संस्कृति के क्षेत्र में बड़े विद्वानों में से एक बन गए, ख़ासकर गोंडी लोगों के बीच बहुत मशहूर हुए। उन्होंने 1945 में मानव विज्ञान सर्वेक्षण के उप-निदेशक के रूप में भी कार्य किया। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने उन्हें उत्तर-पूर्वी भारत के आदिवासी मामलों के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया और बाद में वे नेफा जिसे अब अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है, वहाँ की सरकार के एंथ्रोपोलॉजिकल सलाहकार बनाए गए। भारत सरकार ने उन्हें 1961 में पद्मभूषण से सम्मानित किया। उनकी आत्मकथा ‘द ट्राइबल वर्ल्ड ऑफ़ वेरियर एलविन’ के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1965 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ दिया गया।

प्रमुख कृतियाँ—‘हत्या और आत्महत्या के बीच मारिया’, ‘एक गोंड गाँव में जीवन’, ‘अगरिया’, ‘जनजातीय मिथक : उड़िया आदिवासियों की कहानियाँ’, ‘महाकोशल अंचल की लोककथाएँ’ आदि।

22 फ़रवरी, 1964; दिल्‍ली में निधन।

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