अब मेरी बारी की कविताएँ नए समय की उस नई स्त्री को सम्मुख लाती हैं जो प्रेम तो करना जानती है, लेकिन अपनी वैयक्तिक इयत्ता की क़ीमत पर नहीं। वह प्रेम में डूब जाना चाहती है, लेकिन इस आश्वस्ति के साथ कि प्रेम का दूसरा भागीदार भी उतना ही गहरे उतरे—दूसरे के साथ/न होना/ नहीं होता वफ़ादार होना/वफ़ादार होना होता है/ किसी के साथ/पूरी तरह होना !
प्रेम, पाठ, पहचान और परिवेश—इन श्रेणियों में विभक्त इस संग्रह की कविताएँ जीवन और समाज के अन्य हलक़ों को भी इतनी ही आत्म सजगता के साथ देखती हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ये कविताएँ अपनी भाषा भी अलग ढंग से गढ़ती हैं। निहायत और ग़ैर-पारम्परिक बिम्बों और प्रतीकों का उपयोग करती हुई ये कविताएँ अपनी एक नई भाषा ईजाद करती हैं जिसके ऊपर काव्यास्वाद की स्वीकृत पम्परा का भार लगभग नहीं है।
पुरुषों के घेरों के बीच अपने पूरे आप को लेकर खड़ी हुई औरतों की तरफ़ से कहा गया है—हम अट्टहास करें, भयावह दिखें, ऑक्टोपस बनें/शरीर से छोड़ें स्याही की पिचकारियाँ/उन पर साधे/जो संग होली खेलने को व्याकुल थे।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 160p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 13 X 1 |