Aasha Balwati Hai Rajan-Hard Back

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नन्द चतुर्वेदी हिन्दी के उन विरल कवियों में हैं जिन्होंने अपनी कविता को अपने जीवन-कर्म से जोड़कर सार्थक बनाया है। वे चिन्तन के स्तर पर समाजवादी रहे तथा उन्होंने अपने कवि-कर्म को समाज में व्याप्त ग़ैरबराबरी को मिटाने के लिए समर्पित किया। उनकी सम्पूर्ण कविता तथा इतर लेखन सामान्य जन के बेहतर जीवनयापन के प्रति एक ईमानदार आह्वान है। उनके कवि की मूल चिन्ता उस जन को सम्बोधित है जो सदियों से सामन्तवादी, पूँजीवादी और उपनिवेशवादी शोषण का शिकार रहा है। पर नन्द बाबू की देशज संवेदना ने अपनी कविताओं में इस जन की पीड़ाओं को ऐसी तीव्र अभिव्यक्ति दी है कि उनकी कविता पाठकों को उद्वेलित करती रही है। उन्होंने कविता की भाषा उसी आदमी से ग्रहण की है जो उनके कवि-कर्म का उपजीव्य है। वे अपनी कविता को अमूर्त बिम्बों की सरणि या मिथकीय घटाटोप से नहीं लादते, प्रत्युत सीधी-सादी ज़बान में कह देते हैं। लेकिन वे अपनी कविता को सीधे सपाटपन से भी बचाते हैं और सामान्य जीवन से कविता के औज़ार तलाशते हैं। परिणामस्वरूप उनकी कविता लोकधर्मिता से अलंकृत होती है। वे कबीर की परम्परा के कवि हैं जिनकी कविता जितनी सरल लगती है, उतनी ही विविध अर्थछवियों से सज्जित। नन्द बाबू की कविता का उत्स जनचेतना है तो उसका प्रवाह नैसर्गिक झरने की धारा की तरह है। किन्तु यह झरना पाठक को शीतलता प्रदान कर सुलाता नहीं, बल्कि अपनी कलकल ध्वनि से पाठक को उद्वेलित कर जनपक्षधर बनाता है। उनकी कविता में जो ताप है, वह उसे अग्निधर्मा बनाती है। यह ताप नन्द बाबू आमजन की पीड़ा से प्रसूत अश्रुओं से ग्रहण करते हैं। यही ऊष्मा उनकी कविता का मूल चरित्र है।

—हेतु भारद्वाज

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 136p
Price ₹400.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Nand Chaturvedi

Author: Nand Chaturvedi

नंद चतुर्वेदी

नंद चतुर्वेदी का जन्म 21 अप्रैल, 1923 को रावजी का पीपत्या (पहले राजस्थान अब मध्य प्रदेश में) में हुआ था। उन्होंने एम.ए. (हिन्दी), बी.टी. किया। 1950 से 1955 तक गोविन्दराम सेकसरिया टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में और 1956 से 1981 तक विद्याभवन रूरल इंस्टीट्यूट में हिन्दी के प्राध्यापक रहे। ब्रजभाषा में कविता लिखना प्रारम्भ किया। राष्ट्र की स्वाधीनता और सामाजिक-आर्थिक ग़ैर-बराबरी को रेखांकित करते हुए घनाक्षरी, सवैया, पद, दोहा पदों में रचनाएँ। हिन्दी (खड़ी बोली) में चतुष्पदियों, गीत, अतुकान्त-आधुनिक कविताओं का सृजन किया।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘आशा बलवती है राजन्’, ‘गा हमारी ज़िन्दगी कुछ गा’, ‘उत्सव का निर्मम समय’, ‘जहाँ उजाले की एक रेखा खींची है’, ‘यह समय मामूली नहीं’, ‘ईमानदार दुनिया के लिए’, ‘वे सोए तो नहीं होंगे’ (कविता-संग्रह); ‘शब्द संसार की यायावरी’, ‘यह हमारा समय’, ‘अतीत राग’ (गद्य)। ‘सप्तकिरण’, ‘राजस्थान के कवि’ (भाग 1), ‘इस बार’ (अध्यापकों का कविता-संग्रह), ‘जयहिन्द’ (समाजवादी साप्ताहिक) से लेकर ‘जनमन’, ‘जन-शिक्षण’, ‘मधुमती’ तथा चिन्तन-प्रधान साहित्यिक पत्रिका ‘बिन्दु’ का सम्पादन किया। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की उच्च कक्षाओं के लिए कहानी तथा गद्य की अन्य विधाओं का संग्रह-सम्पादन किया। राजस्थान साहित्य अकादेमी के लिए प्रान्त के प्रख्यात रचनाकारों पर ‘मोनोग्राफ़’ लेखन।

उन्हें ‘मीराँ पुरस्कार’, ‘बिहारी पुरस्कार’, ‘लोकमंगल पुरस्कार’, ‘अखिल भारतीय आकाशवाणी सम्मान’ (श्रेष्ठ वार्ताकार) आदि से सम्मानित किया गया।

25 दिसम्बर, 2014 को उनका निधन हुआ।

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