सामन्तशाही के गर्भ से जन्मे पूँजीवाद के बीभत्स चेहरे को सामने लाने का काम भारी जोखिम और चुनौती से भरा हुआ है। पूँजीवाद के ढहते क़ि‍ले की कमज़ोर दीवारों से झड़ती रेत को देखना भी कम साहस-भरा काम नहीं है। लेकिन महत्‍त्‍वपूर्ण लेखिका दिनेश नन्दिनी डालमिया ने अपने इस उपन्यास में ऐसी तमाम रचनात्मक चुनौतियों को स्वीकार किया है। सड़े-गले समाज में दम तोड़ते विखंडित जीवन-मूल्यों की ही अविस्मरणीय अन्तरकथा है यह उपन्यास।

जिस समाज में सच के पक्ष में खड़े होना एक दुर्लभ दृश्य बन गया हो, जिस समाज में सरेआम सच्चाई पर झूठ और पाखंड का शासन चल रहा हो, जिस समाज में सच जीवित इनसानों के सीनों में दम तोड़ते सपनों में बदल गया हो, यह उपन्यास उसी समाज में जड़ और गतिहीन सम्बन्धों के अन्तर्द्वन्द्व को उजागर करता है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1993
Edition Year 1996, Ed. 2nd
Pages 376p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Author: Dinesh Nandini Dalmiya

दिनेश नंदिनी डालमिया

जन्‍म : 16 फरवरी, 1928

राजस्थान के उदयपुर शहर में जन्मी दिनेश नन्दिनी डालमिया ने सन् 1944 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया।

छात्रा थीं, तभी से लिखना शुरू किया। गद्य-गीत रचना में विशेष रुचि रही।

प्रमुख कृतियाँ : गद्य-गीत संग्रह—‘शबनम’, ‘मौक्तिमाल’, ‘शारदीया’, ‘दुपहरिया के फूल’, ‘वंशीरव’, ‘उनमन’, ‘स्पन्दन’, ‘शर्वरी’, ‘चिन्तन’; कविता-संग्रह—‘सारंग’, ‘मनुहार’, ‘प्रतिच्छाया’, ‘उरवाती’, ‘इति’, ‘जागती हुई रात’, ‘हिरण्यगर्भा’; उपन्यास—‘मुझे माफ़ करना’, ‘आहों की बैसाखियाँ’, ‘कंदी का धुआँ’, ‘सूरज डूब गया’, ‘फूल का दर्द’, ‘आँख मिचौली’, ‘यह भी झूठ है’; कहानी-संग्रह—‘चूड़ी चटक गई।’

सम्मान : उत्तर प्रदेश का ‘प्रेमचन्द पुरस्कार’, ‘सेकसरिया पुरस्कार’, ‘पद्मभूषण’ आदि से सम्‍मानित।

निधन : 25 अक्‍टूबर, 2007

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