Upanyas Aur Varchasva Ki Satta

Author: Virendra Yadav
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Upanyas Aur Varchasva Ki Satta
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प्रायः उपन्यास को मात्र साहित्यिक संरचना मानकर आस्वादपरक दृष्टि से मूल्यांकन का चलन रहा है। वीरेन्द्र यादव हिन्दी की इस आलोचनात्मक रूढ़ि को तोड़ते हुए उपन्यास विधा की नई सामर्थ्य को उजागर करते हैं। अन्तर्वस्तु के सघन पाठ द्वारा वे उपन्यास की उस ‘सबाल्टर्न’ (निम्नवर्गीय) भूमिका को उद्घाटित करते हैं, जो प्रभुत्वशाली विमर्श द्वारा अधिगृहीत कर ली जाती है।

वीरेन्द्र यादव मानते हैं कि उपन्यास साहित्यिक रचना के साथ-साथ सामाजिक निर्मिति भी है और उसकी जनतान्त्रिकता केवल रचाव की कला से नहीं आती, औपन्यासिक विमर्श की सामाजिक दृष्टि से भी निर्मित होती है। इसीलिए वे ‘गोदान’, ‘झूठा सच’, ‘आधा गाँव’, ‘राग दरबारी’, ‘आग का दरिया’ व ‘उदास नस्लें’ सरीखे कालजयी उपन्यासों का विश्लेषण करते हुए सबाल्टर्न इतिहास-दृष्टि की मदद से इन उपन्यासों में किसानों, दलितों, स्त्रियों और अन्य अधीनस्थ वर्गों की उपस्थिति-अनुपस्थिति और उनकी यातना, सामाजिक सजगता तथा संघर्षशीलता की पहचान का आख्यान खोजते हैं। साथ ही वे प्रभुत्वशाली वर्गों से अधीनस्थ वर्गों के अन्तर्विरोधों और द्वन्द्वों का आख्यान रचनेवाली कथादृष्टि की सामाजिक पक्षधरता की भी जाँच-परख करते हैं। यह एक प्रकार से उपन्यास की आलोचना के माध्यम से भारतीय समाज और साहित्य के राष्ट्रवादी विमर्श से बहिष्कृत अधीनस्थ वर्गों की पहचान को विकसित करने के लिए वैचारिक संघर्ष भी है। वीरेन्द्र यादव के आलोचनात्मक निबन्धों में आज के भारतीय समाज के ज्वलन्त प्रश्नों, सामाजिक द्वन्द्वों और वैचारिक टकराहटों की प्रतिध्वनियाँ भी सुनाई देती हैं। उनकी आलोचना दृष्टि की प्रखरता और विश्लेषण की नवीनता के कारण जानदार है और असरदार भी।

‘उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता’ के आलोचनात्मक निबन्ध समसामयिक उपन्यास विमर्श में वैचारिक हस्तक्षेप सरीखे हैं। इस पुस्तक के अधिकांश लेख पर्याप्त रूप से चर्चित और प्रशंसित रहे हैं। भारतीय अंग्रेज़ी औपन्यासिक लेखन पर केन्द्रित ‘दि इंडियन इंग्लिश नॉवेल और भारतीय यथार्थ’ शीर्षक लेख तो अंग्रेज़ी बौद्धिकों के बीच चर्चित होकर अन्तरराष्ट्रीय बहसों का हिस्सा बना। वीरेन्द्र यादव के आलोचनात्मक निबन्धों की प्रतीक्षा सुधी बौद्धिकों के बीच लम्बे समय से रही है। विश्वास है, यह पुस्तक उनकी अपेक्षाओं की पूर्ति करने में सक्षम होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2009
Edition Year 2017, Ed 2nd
Pages 260p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Virendra Yadav

Author: Virendra Yadav

वीरेन्द्र यादव

जन्म : 5 मार्च, 1950; जौनपुर (उ.प्र.)।

लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एम.ए.। छात्र जीवन से ही वामपंथी बौद्धिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी। उत्तर प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के लम्बे समय तक सचिव एवं ‘प्रयोजन’ पत्रिका का सम्पादन। जान हर्सी की पुस्तक ‘हिरोशिमा’ का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद। साहित्यिक-सांस्कृतिक विषयों पर पत्र-पत्रिकाओं में विपुल लेखन। प्रेमचन्द सम्बन्धी बहसों और ‘1857’ के विमर्श पर हस्तक्षेपकारी लेखन के लिए विशेष रूप से चर्चित। कई लेखों का अंग्रेज़ी और उर्दू में भी अनुवाद प्रकाशित। ‘राग दरबारी’ उपन्यास पर केन्द्रित विनिबन्ध इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली के एम.ए. पाठ्यक्रम में शामिल। ‘नवें दशक के औपन्यासिक परिदृश्य’ पर विनिबन्ध ‘पहल पुस्तिका’ में प्रकाशित।

सम्मान : आलोचनात्मक अवदान के लिए वर्ष 2001 के ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’ से समादृत।

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