Swami Vivekanand Sanchayita

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Swami Vivekanand Sanchayita
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“धर्म को ग्रहणशील होना चाहिए और ईश्वर सम्बन्धी अपने विश्वासों में भिन्नता के कारण एक-दूसरे का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। ईश्वर सम्बन्धी सभी सिद्धान्त मानव-सिद्धान्त के तहत आने चाहिए। और जब धर्म इतने उदार हो जाएँगे तो उनकी कल्याणकारी शक्ति सौ गुना हो जाएगी। धर्मों में अद्भुत शक्ति है लेकिन उनकी संकीर्णताओं के कारण उनसे लाभ की जगह हानि ज़्यादा हुई है।”

 

ये शब्द स्वामी विवेकानन्द के हैं जो अपने एक अन्य लेख में यह भी कहते हैं कि, “लोग भारत के पुनरुद्धार के विषय में जो जी में आए कहें, मैं अपने अनुभव के बल पर कह सकता हूँ कि जब तक तुम सच्चे अर्थों में धार्मिक नहीं होते, भारत का उद्धार होना असम्भव है।” स्वामी विवेकानन्द भारत के ऐसे चिन्तक थे जिनके विषय में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने रोम्यां रोलां को लिखा था कि अगर आप भारत को जानना चाहते हैं तो सबसे पहले विवेकानन्द का अध्ययन कीजिए।

 

धर्म और धार्मिक होने के सन्दर्भ में उन्हीं स्वामी विवेकानन्द के उपरोक्त दो कथन स्वयं घोषित करते हैं कि आज इक्कीसवीं सदी में वे हमारे लिए कितने उपयोगी और प्रासंगिक हैं। आज जब विचार को लेकर नहीं धर्मों के झंडों को लेकर दुनिया एक नए ध्रुवीकरण की दिशा में बढ़ रही है, हमें धार्मिक होने के सही मायने समझने की ज़रूरत है। सभी धर्म अलग-अलग समय और अलग-अलग जगहों पर उस स्थान और काल की समस्याओं से निजात पाने के प्रयासों के रूप में सामने आए, और अगर कालान्तर में चलकर वे व्यक्ति की इयत्ता का, उसकी पहचान का, उसके सामूहिक बोध और यहाँ तक कि राष्ट्रों तक का आधार बन गए तो इससे सिर्फ़ यह पता चलता है कि न तो कोई धर्म अपने आप में पूर्ण है और न ही व्यक्ति अभी इतना विकसित हुआ है कि वह धर्म के बिना अपना काम चला सके। कह सकते हैं कि हमें अभी सच्चे अर्थों में धार्मिक होना नहीं आया। धर्मों के सांसारिक-राजनीतिक दुरुपयोग की वजह भी यही है।

 

ऐसे समय स्वामी विवेकानन्द के लेखों, भाषणों, कक्षालापों के इस प्रतिनिधि संचयन का प्रकाशन विशेष महत्त्व रखता है। आशा है कि इसके अध्ययन से हमें धर्म, नैतिकता, भक्ति, ईश्वर और हिन्दुत्व के सच्चे अर्थों तक पहुँचने में मदद मिलेगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 456p
Translator Not Selected
Editor Archana Tripathi
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
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Author: Ramshankar Diwedi

रामशंकर द्विवेदी

डॉ. रामशंकर द्विवेदी का जन्म 1937 में जालौन में हुआ। उन्होंने हिन्दी साहित्य में 1964 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. में प्रथम श्रेणी में प्रथम रहकर उत्तीर्ण की। 

1965 से 1998 तक उन्होंने उरई के दयानन्द वैदिक महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में काम किया। उनकी विशेष ख्याति बाङ्ला-हिन्दी के एक अनुवादक के रूप में है। अब तक बाङ्ला से हिन्दी में उनकी तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और उनके लेखसमीक्षाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। अनुवाद के लिए उन्हें द्विवागीश तथा साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल चुका है। आजकल स्वतन्‍त्र लेखन।

सम्पर्क : निवास 1260, नया रामनगरउरई-2850001 

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