सुवर्णद्वीप उपन्यास में शीशमहल की बाती की तरह प्रकाशित बहुआयामी और बहुस्तरीय यथार्थ को भेदने में सिर्फ़ अभिषेक जैसा नायक ही समर्थ है। उसका दृढ़ व्यक्तित्व उसके अहं, उसके समाज, पेशे, राजनीति, प्रशासन के आँधी-पानी का मुक़ाबला करता रहता है। समझौता नहीं कर पाता, तिल-तिल कर जल जाता है। मगर उसकी ऊर्जस्विता उसकी ज़िन्दगी की त्रासदी बन जाती है। यह, सुवर्णद्वीप या जम्‍बूद्वीप या तीसरे विश्व का कोई देश, रत्नगर्भा तथा सुफला होते हुए भी क़िस्मत का मारा है। उसका शक्तिमान नायक भी जैसे उद्‌भट नियति का शिकार बनकर अपनी पहचान नहीं बना पाता है।

अनेक कहानियाँ, अनगिनत फंतासियाँ, पग-पग पर थिरकती संवेदनाएँ, संक्षिप्त व्यंजना, सूत्रात्मक निष्कर्ष, बिम्ब-रूपक हास्य-व्यंग्य, भाषिक कौशल, अनुभूति की व्याप्ति, सृजनात्मक कल्पना सब मिलकर एक मानववादी लेकिन परास्त पुरुष का सम्पूर्ण चित्र उकेरती हैं। ‘सुवर्णद्वीप’ उपन्यास एक सम्भावनापूर्ण प्रयोग तथा सफल कृति है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 132p
Translator Radhakant Mishra
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: Hrishikesh Panda

हृषीकेश पंडा

जन्म : 1 मई, 1955; खरियार, ज़िला—कालाहांडी (अब नुआपड़ा) ओडिशा में।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा के बीस वर्ष कालाहांडी और कोरापुर जैसे विकासशील क्षेत्रों में बीते। स्नातकोत्तर उपाधि (रसायनशास्त्र), ‘रचनात्मक लेखन’ में पीएच.डी., एम.बी.ए. (ऑस्ट्रेलिया), समाज कार्य में डिप्लोमा।

कार्य : भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रथम स्थान, (1979)। भारत और ओडिशा सरकार में विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य। शिक्षा विभाग के सचिव। अब सेवानिवृत्‍त।

प्रमुख कृतियाँ : ‘सात उपन्यास’ (‘शुन संजे सामयिक संधि’, ‘हरिण पिठिरे अजणा सूर्यास्तकु’, ‘श्रुति-1994’, ‘हस ओ इतिहास’ आदि), छह कहानी-संग्रह, चार नाटक तथा कई टेलीफ़िल्में। अधिकांश भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेज़ी में रचनाएँ अनूदित।

सम्‍मान : दर्जनों प्रतिष्ठित सम्मान जिनमें ‘ओडिशा साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ (1995) और ‘नाट्यशास्त्र पुरस्कार’ (अन्तरराष्ट्रीय नाटकोत्सव, 1999) उल्लेखनीय हैं।

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