Surkh Aur Syah

Author: Standhal
Translator: Nemichandra Jain
Edition: 2009
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹450.00 Regular Price ₹500.00
10% Off
In stock
SKU
Surkh Aur Syah
- +
Share:

इस उपन्यास की शुरुआत में स्तान्धाल ने दांते की इस उक्ति को आदर्श वाक्य के रूप में दिया है, “सच; बस तल अपने पूरे तीखेपन के साथ...।” और फिर पूरा उपन्यास मानो इस पुरालेख का औचित्य सिद्ध करने में लगा दिया है। किसानी धूर्तता से भरा हुआ, नायक जुलिएं सोरेल का लालची बाप, भरे-पेट और चैन-भरे जीवन की चाहत रखनेवाले मठवासी, अपने ही देश पर हमले का षड्‌यंत्र रच रहे प्रतिक्रान्तिकारी अभिजात, अपने फ़ायदे के लिए पूणित अवसरवादी ढंग से राजनीतिक दल बदलते रहनेवाले रेनाल और वलेनो जैसे लोग उत्तर-नेपोलियनकालीन फ़्रांस में जारी घिनौने नाटक के लगभग सभी केन्द्रीय पात्र यहाँ मौजूद हैं।

आम तौर पर पूरा परिदृश्य नितान्त निराशाजनक है। इसके साथ ही वेरियेरे का औद्योगीकरण, मुद्रा की बढ़ती सर्वग्रासी शक्ति, बुर्जुआ नवधनिकों द्वारा पुराने अभिजातों की नक़ल की भौंडी कोशिशें, बे-ल-होत में मठ के पुनर्निर्माण के पीछे निहित प्रचारवादी उद्देश्य, जानसेनाइटों और जेसुइटों के झगड़े, जेसुइटों की गूँज सोसाइटी का सर्वव्यापी प्रभाव और धर्म सभा आदि के ब्योरों से स्तान्धाल ने इस उपन्यास में तत्कालीन फ़्रांस की तस्वीर को व्यापक फलक पर उपस्थित किया है।

जुलिएं सोरेल अपने ऐतिहासिक युग का एक विश्वसनीय प्रातिनिधिक चरित्र है जिसमें एक ही साथ, नायक और प्रतिनायक—दोनों ही के गुण निहित हैं। अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए और उद्देश्यपूर्ति के लिए वह नैतिकता-अनैतिकता का ख़्याल किए बग़ैर कुछ भी करने को तैयार रहता है। यह खोखले और दम्भी-पाखंडी बुर्जुआ समाज के ऊँचे लोगों के प्रति उसके उस सक्रिय-ऊर्जस्वी व्यक्तिवादी व्यक्तित्व की नैसर्गिक प्रतिक्रिया है जो महज सामान्य परिवार में पैदा होने के चलते एक गुमनाम, मामूली और ढर्रे से बँधी ज़िन्दगी जीने के लिए तैयार नहीं है। वह उस समाज के विरुद्ध हर तरीक़े से संघर्ष करता है जहाँ महज कु़ल और सम्पत्ति के आधार पर पद, सम्मान और विशिष्टता हासिल हुआ करती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2003
Edition Year 2009
Pages 434p
Translator Nemichandra Jain
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Surkh Aur Syah
Your Rating
Standhal

Author: Standhal

स्तान्धाल

जन्म : 23 जनवरी, 1783; ग्रिनोबल, फ़्रांस।

बाल्ज़ाक की चर्चा यथार्थवाद के प्रवर्तक के रूप में की जाती है। लेकिन इतिहास का तथ्य यह है कि स्तान्धाल भी इस श्रेय का समान रूप से हक़दार है। बल्कि यदि कालक्रम की दृष्टि से देखें तो यथार्थवाद का प्रवर्तक स्तान्धाल को ही माना जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने यथार्थवादी लेखन की स्पष्ट दिशा बाल्ज़ाक से कुछ वर्ष पहले ही अपना ली थी। यूरोपीय साहित्येतिहास के गम्भीर अध्येता ऐसा मानते भी हैं, लेकिन आम पाठकों के बीच स्तान्धाल का नाम आज भी अपेक्षतया अल्पज्ञात है।

इसका एक कारण शायद यह भी है कि स्तान्धाल की बहुतेरी अप्रकाशित कृतियाँ उसकी मृत्यु के क़रीब पचास वर्ष बाद प्रकाशित हुईं। उनके जीवनकाल में कम ही आलोचकों ने उनके कृतित्व पर ध्यान दिया। अपनी अनूठी यथार्थवादी शैली और उपन्यासों की संश्लिष्ट, प्रयोगधर्मी मनोवैज्ञानिक बुनावट के चलते सिर्फ़ प्रबुद्ध पाठकों ने ही उन्हें सराहा। बाल्ज़ाक और अपने अन्य प्रमुख समकालीनों की तुलना में स्तान्धाल ने बहुत कम लिखा था और उपन्यास से अधिक उसने संगीत एवं कला-विषयक निबन्ध और यात्रा-वृत्तान्त आदि लिखे थे। शासकीय सेवा में रहते हुए सक्रिय जीवन का अधिकांश हिस्सा उन्होंने फ़्रांस से बाहर, मुख्यतः इटली में, बिताया था। 1821 से 1830 के बीच जब वह पेरिस में थे भी तो सैलों में उनकी ख्याति मुख्यतः एक ‘कन्वर्सेशनलिस्ट’ और ‘पोलेमिसिस्ट’ के रूप में थी जो अपने ग़ैर-परम्परागत विचारों एवं तार्किकता के लिए जाना जाता था। उनके सर्वोत्कृष्ट उपन्यास ‘सुर्ख़ और स्याह’ और ‘पारमा का चार्टरहाउस’ (The Charterhouse of Parma) जब छपे तो वह फ़्रांस से बाहर थे। इन सबके बावजूद, स्तान्धाल के जीवनकाल में कुछ प्रसिद्ध साहित्यिक हस्तियों ने उनकी प्रतिभा का उच्च आकलन किया जिनमें गोएठे, बाल्ज़ाक और मेरिमी प्रमुख थे। उल्लेखनीय है कि 1830 के दशक में ही पुश्किन और तोल्स्तोय भी स्तान्धाल के लेखन से परिचित हो चुके थे और उन्होंने उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी।

निधन : 23 मार्च, 1842; पेरिस

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top