संघर्ष’ की कथा मानव की उस अन्तर्निहित शक्ति को समर्पित है जो उसे अत्याचार और अन्याय से लडऩे को प्रेरित करती है। जब उपेक्षा, अवहेलना, तिरस्कार और उत्पीड़न मानव की सहज सहनशीलता का अतिक्रमण करने लगते हैं, तब उसकी चेतना उसके सुप्त स्वाभिमान को जगाकर अन्याय का प्रतिरोध करने को प्रेरित करती है।
‘संघर्ष’ की कथा भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के एक स्वर्णिम, पर लगभग उपेक्षित एवं विस्मृत अध्याय—चम्पारण सत्याग्रह तथा फ़िजी के कुछ भारतवंशी परिवारों पर केन्द्रित है। उन्नीसवीं शताब्दी से लेकर आज तक भारतीयों और भारतवंशियों को अन्याय और उपेक्षा के विरुद्ध तथा अपने अधिकारों की प्राप्ति एवं उनकी रक्षा के लिए बराबर संघर्ष करना पड़ा है। कई बार उनके प्रयासों को अपेक्षित सहानुभूति भी नहीं मिलती। अनेक परिस्थितियों में, देश-देशान्तर में संघर्ष की यह अन्तर्कथा आज भी सारगर्भित है। चम्पारण और बिहार के सन्दर्भ में तो ‘संघर्ष’ की कथा और भी सटीक है।
‘संघर्ष’ मानव की कर्मठता को एक विनम्र प्रणाम है और उसकी सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित करने का एक लघु प्रयास भी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2007 |
Edition Year | 2019, Ed. 3rd |
Pages | 256p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2 |