Samaan Nagrik Sanhita : Chunautiyan Aur Samaadhan-Hard Cover

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इस पुस्तक में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बने धर्मनिरपेक्ष क़ानूनों का समान नागरिक संहिता के सन्दर्भ में महत्त्व; अनुच्छेद 44 पर संविधान सभा में किए गए बहस की प्रासंगिकता; सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नागरिक संहिता के पक्ष में दिए गए निर्णयों के महत्त्व; नीति-निर्माताओं द्वारा हिन्दू क़ानून (1955) या भरण-पोषण क़ानून (1986) या तीन तलाक़ क़ानून (2017) बनाते समय और विधि आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट (2018) प्रस्तुत करते समय खो दिए गए अवसर के प्रभाव का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।

विश्व के प्रमुख सिविल संहिताओं जैसे फ्रांस, जर्मन, स्विस, टर्की, पुर्तगाल, गोवा सिविल संहिता का उल्लेख करते हुए पुस्तक में 'इक्कीस सूत्री मार्गदर्शक सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया गया है। इसके आधार पर एक सर्वमान्य 'भारतीय सिविल संहिता' बनाया जा सकता है। संविधान निर्माताओं की मंशा के अनुरूप प्रस्तावित समान नागरिक संहिता को व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिसमें व्यक्ति, परिवार एवं सम्पत्ति सम्बन्धी विषयों के साथ राष्ट्रीयता सम्बन्धी विषय शामिल हैं।

पुस्तक में 'भारत राष्ट्र हमारा' के रूप में राष्ट्रगान, 'चक्रध्वज' के रूप में राष्ट्रीय ध्वज के अतिरिक्त राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय पर्व और राष्ट्रीय दिवस, राष्ट्रीय सम्मान, भारतीय नागरिकता रजिस्टर, राष्ट्रपरक उपनाम जैसे विषयों की संविधान के अनुरूप व्यापक दृष्टिकोण के साथ व्याख्या की गई है।

भारत में लागू सभी व्यक्तिगत क़ानूनों; यथा—हिन्दू क़ानून, मुस्लिम क़ानून, ईसाई क़ानून, पारसी क़ानून में मौजूद सभी विसंगति वाले विषयों जैसे बहुविवाह, विवाह-उम्र, मौखिक विवाह-विच्छेद (तलाक़), हलाला, उत्तराधिकार, वसीयत, गोद, अवयस्कता, जनकता, दान, मेहर, भरण-पोषण, महिलाओं की सम्पत्ति में अधिकार, आर्थिक अराजकता का विश्लेषण कर इनका धर्मनिरपेक्ष समाधान इस पुस्तक में दिया गया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 356p
Price ₹995.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Anoop Baranwal

Author: Anoop Baranwal

अनूप बरनवाल

अनूप बरनवाल का जन्म 15 जुलाई, 1973 को ज़ि‍ला आज़मगढ़ (यू.पी.) के ठेकमा बाज़ार में हुआ। आपने तिलकधारी महाविद्लायल, जौनपुर से बी.एस-सी. व एल-एल.बी. की पढ़ाई की और एल-एल.बी. में विश्वविद्यालय स्तर पर सर्वोच्च स्थान हासिल कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया। आप वर्ष 1998 से इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे हैं।

वकालत के साथ आप एकेडमिक रुचि भी रखते हैं। आपने विधिक पत्रिका 'वायस ऑफ़ लॉ एंड जस्टिस' प्रारम्भ किया और इसके सम्पादन का दायित्व निभा रहे हैं। आप इलाहबाद हाईकोर्ट द्वारा निकाले जा रहे ‘इंडियन लॉ रिपोर्टर’ के सम्पादन समूह के सदस्य हैं। आपके द्वारा संवैधानिक महत्त्व की कई जनहित याचिकाएँ दाख़िल की गई हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 'भारत के निर्वाचन आयोग' की चयन प्रक्रिया में सुधर हेतु दाख़िल याचिका प्रमुख है। आपके द्वारा समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए 'मिशन अनुच्छेद 44 : एक राष्ट्र, एक सिविल क़ानून' चलाया जा रहा है।

प्रकाशित कृतियाँ : 'प्रिंसिपुल एंड प्रैक्टिस ऑफ़ रिट जुरिस्डिकशन' (2004); 'निर्माण-पुरुष डॉ. अम्बेडकर की संविधान यात्रा' (2017); ‘भारतीय सिविल संहिता का सिद्धान्त’ (2017) एवं ‘तीन तलाक़ की मीमांसा’ (2018)।

 

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