Prem Gali Ati Sankri

Author: Shazi Zaman
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Prem Gali Ati Sankri
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नाम के बावजूद, परम्परागत मायने में ये कोई प्रेमकथा नहीं, क्योंकि ये किसी तर्कसंगत (दुनियावी मायने में तर्कसंगत) मुक़ाम तक नहीं पहुँचती, लेकिन ये ज़रूर ज़ाहिर करती है कि कोई भी दृष्टिकोण—आधुनिक या परम्परागत—इंसानी ताल्लुक़ात की बारीकी, पेचीदगी और उसके ‘डाइनेमिक्स’ को पूरे तौर पर समझा पाने में सक्षम नहीं है।

‘प्रेम गली अति साँकरी’ की शुरुआत लन्दन के इंडियन वाई.एम.सी.ए. से होती है एक रूहानी बहस के साथ—एक बहस जो कबीर और कल्पना को एक-दूसरे से क़रीब लेकिन इतिहास में बहुत दूर और समाज में बहुत गहरे तक ले जाती है। कहानी का हर पात्र—कबीर, कल्पना, मौलाना, शायर, प्रोफ़ेसर— अपने आप में एक प्रतीक है। इन पात्रों के लन्दन की एक छत के नीचे जमा हो जाने से सामाजिक और व्यक्तिगत परिवेश की परतें खुलती जाती हैं, और कबीर और कल्पना के बीच धूप-छाँव के ताल्लुक़ात से ‘जेंडर रिलेशंज़’ की हज़ारों बरस की आकृति—और विकृति—दिखती जाती है। वो ‘बातों के सवार’ होकर न जाने कहाँ-कहाँ तक चले जाते हैं।

इंडियन वाई.एम.सी.ए. की नाश्ते की मेज़ से शुरू होनेवाली कहानी का आख़िरी (फ़िलहाल आख़िरी) पड़ाव है लन्दन की हाइगेट सीमेट्री—कार्ल मार्क्स की आख़िरी आरामगाह—जहाँ बहस है मार्क्स, क्लास और जज़्बात की। कल्पना का यह आरोप कि मार्क्स ने जगह ही नहीं छोड़ी इंसानी रूह के लिए, ‘बातों के सवार’ को मजबूर करता है यह सोचने पर कि क्या हालात और जज़्बात होते हैं जो हमेशा लोगों को क़रीब और दूर करते रहे हैं।

“ऐसा सबद कबीर का, काल से लेत छुड़ाय,” तुमने कहा।

“कार्ल से लेत छुड़ाय,” मैंने एक ठहाका लगाकर कहा।

ख़ामोश क़ब्रिस्तान में ठहाका काफ़ी देर तक और दूर-दूर तक गूँजता रहा। ‘बातों के सवार’ आसमान के बदलते हुए रंग को देखते रहे।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2012, Ed. 2nd
Pages 104p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Shazi Zaman

Author: Shazi Zaman

शाज़ी ज़माँ

दिल्ली के सेन्ट स्टीफ़ंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक शाज़ी ज़माँ ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपने करियर की शुरुआत 1988 में दूरदर्शन से की। ‘बीबीसी वर्ल्ड सर्विस’, ‘ज़ी न्यूज़’ और ‘आज तक’ से होते हुए फ़‍ि‍लहाल आप ‘एबीपी न्यूज़ नेटवर्क’ (ANN) के समूह सम्पादक हैं। आपके दो उपन्यास ‘प्रेमगली अति सांकरी’ और ‘जिस्म-जिस्म के लोग’ राजकमल प्रकाशन से पहले प्रकाशित हो चुके हैं।

सम्पर्क : shazi.zaman@gmail.com

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