Pratinidhi Kavitayen : Bhawani prasad Mishra

Edition: 2023, Ed. 5th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Pratinidhi Kavitayen : Bhawani prasad Mishra
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बीसवीं सदी के तीसरे दशक से लेकर नौवें दशक की शुरुआत तक कवि भवानी प्रसाद मिश्र की अनथक संवेदनाएँ लगातार सफ़र पर रहीं।

हिन्दी भाषा और उसकी प्रकृति को अपनी कविता में सँजोता और नए ढंग से रचता यह कवि न केवल घर, ऑफ़ि‍स या बाज़ार, बल्कि समूची परम्परा में रची-पची और बसी अन्तर्ध्‍वनियों को जिस तरकीब से जुटाता और उन्हें नई अनुगूँजों से भरता है, वे अनुगूँजें सिर्फ़ कामकाजी आबादी की अनुगूँजें नहीं हैं, उस समूची आबादी की भी हैं जिसमें सूरज, चाँद, आकाश-हवा, नदी-पहाड़, पेड़-पौधे और तमाम चर-अचर जीव-जगत आता है। स्वभावत: इस सर्जना में मानव-आत्मा का सरस-संगीत अपनी समूची आत्मीयता और अन्तरंगता में सघन हो उठा है। कविता में मनुष्य और लोक-प्रकृति और लोक-जीवन की यह संयुक्त भागीदारी एक ऐसी जुगलबन्दी का दृश्य रचती है जिसे केवल निराला, किंचित् अज्ञेय और यत्किंचित् नागार्जुन जैसे कवि करते हैं।

कविता के अनेक रूपों, शैलियों और भंगिमाओं को समेटे यह कवि पारम्परिक रूपों के साथ-साथ नवीनतम रूपों का जैसा विधान रचता है, वह उसकी सामर्थ्‍य की ही गवाही देता है। मुक्त कविता, गीत-ग़ज़ल, जनगीत, खंडकाव्य, कथा-काव्य, प्रगीत कविता के साथ उसकी सीधी-सादी प्रत्यक्ष भावमयी शैली के साथ आक्रामक, व्यंग्य और उपहासमयी, सांकेतिक और विडम्बनादर्शी भंगिमाएँ भी यहाँ मौजूद हैं। कई एक साथी कवियों में जैसी एकरसता देखी जाती है, भवानी प्रसाद मिश्र ने उसे अपनी भंगिम-विपुलता और शैली-वैविध्य से बार-बार तोड़ा है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2014
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 144p
Translator Not Selected
Editor Vijay Bahadur Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18 X 12 X 1
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Bhawaniprasad Mishra

Author: Bhawaniprasad Mishra

भवानी प्रसाद मिश्र

बीसवीं सदी की हिन्दी कविता में अपने अलग काव्य-मुहावरे और भाषा-दृष्टि के साथ-साथ स्वदेशी चेतना की तेजस्विता और कविता की प्रतिरोधक आवाज़ की पहचान बने भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को ज़‍िला होशंगाबाद के नर्मदा-तट के एक गाँव टिगरिया में हुआ। 1930 में उन्होंने लिखा—'जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख।’

जीवन की शुरुआत मध्य प्रदेश के ही बैतूल ज़‍िले में एक पाठशाला खोलकर, किन्तु सन् बयालीस के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में लगभग तीन साल का क़ैदी जीवन बिताने के बाद गांधी और उनके सहयोगियों के साथ रहे। कुछेक दिनों तक 'कल्पना’ (हैदराबाद) में। फ़‍िल्मों और आकाशवाणी में काम। इसके बाद सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय के हिन्दी खंड के सम्पादक। बाद में ‘गांधी मार्ग’ जैसी विशिष्ट पत्रिका के सम्पादक के रूप में साहित्यिक पत्रकारिता की एक रचनात्मक धारा का प्रवर्तन करते रहे।

20 फरवरी, 1985 को गृहनगर नरसिंहपुर में हृदयाघात से आकस्मिक मृत्यु।

भवानी प्रसाद मिश्र रचनावली के कुल आठ खंडों के अलावा कवि के अन्य चर्चित कविता-संग्रह हैं—‘गीत फ़रोश’, ‘चकित है दु:ख’, ‘गांधी पंचशती’, ‘बुनी हुई रस्सी’, ‘ख़ुशबू के शिलालेख’, ‘त्रिकाल संध्‍या’, ‘व्यक्तिगत’, ‘परिवर्तन जिए’, ‘तुम आते हो’, ‘इदम् न मम्’, ‘शरीर कविता : फ़सलें और फूल’, ‘मानसरोवर दिन’, ‘सम्प्रति’, ‘अँधेरी कविताएँ’, ‘तूस की आग’, ‘कालजयी’, ‘अनाम’ और ‘नीली रेखा तक’।

बाल कविताएँ—‘तुकों के खेल’; संस्मरण—‘जिन्होंने मुझे रचा’; निबन्ध-संग्रह—‘कुछ नीति कुछ राजनीति’।

1972 में उनकी कृति ‘बुनी हुई रस्सी’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ मिला। 1981-82 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘साहित्यकार सम्मान’ तथा 1983 में मध्य प्रदेश शासन के ‘शिखर सम्मान’ से उन्‍हें अलंकृत किया गया।

निधन : 20 फरवरी, 1985

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