Ye Kohre Mere Hain

Edition: 1998
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Ye Kohre Mere Hain

ये कोहरे मेरे हैं’ में संकलित भवानी भाई की, 1954-55 से लेकर 1970-71 की डायरियों में लिखी, वे प्रेम-कविताएँ हैं, जो पहली बार यहाँ एक साथ प्रकाशित हो रही हैं। ये ठेठ प्रेम-कविताएँ हैं और कवि ने इनके माध्यम से अपने जीवनानुभवों और काव्य-बोध को निरन्तर विकसित, विस्तृत और सुसम्पन्न किया है। मानव-स्वभाव की सरलता और जटिलता, रंगीनी और सादगी का जैसा जोड़-तोड़ यहाँ प्रतिफलित है, उससे यह भी सूचित होता है कि भावों के सुसंस्कार में विचारों की भूमिका किस कोटि का योगदान करती है और कविता कैसे-कैसे झड़े-तिरछे रास्तों और उतार-चढ़ावों से होकर अपना साज-सँवार पाती है।

निश्चय ही इन कविताओं में कवि ने अपने व्यक्तित्व के उस पक्ष को दर्ज किया है, जो न तो स्वतंत्रताप्रेमी आन्दोलनकारी का है, न ही जोशो-खरोश से लबालब भरे आदर्शवादी का। इनमें मानवीय रिश्तों का एक ख़ूबसूरत सपना देखने की कोशिश है जो किसी भी श्रेष्ठ कविता से सहज अपेक्षित है। कहने को ये सपने बहुत आमफहम और मामूली हैं, किन्तु वास्तविक जीवन में इनकी परिणति इन दिनों लगभग असम्भव हो उठी है। इनमें एक आदमी का दूसरे आदमी के पास तनिक देर बैठकर अपना दु:ख-दर्द कह डालने की इच्छा, परस्पर के नेह-बन्धन में बँधकर आकाश-भर विस्तार पाने की आकांक्षा, जीवन की भागम-भाग और निरन्तर मशीनी और औपचारिक होते सम्बन्धों के विरोध में सघन परिचय और आत्मीयता की बारादरी सजाने का सपना झिलमिला रहा है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Edition Year 1998
Pages 184p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Bhawaniprasad Mishra

Author: Bhawaniprasad Mishra

भवानी प्रसाद मिश्र

बीसवीं सदी की हिन्दी कविता में अपने अलग काव्य-मुहावरे और भाषा-दृष्टि के साथ-साथ स्वदेशी चेतना की तेजस्विता और कविता की प्रतिरोधक आवाज़ की पहचान बने भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को ज़‍िला होशंगाबाद के नर्मदा-तट के एक गाँव टिगरिया में हुआ। 1930 में उन्होंने लिखा—'जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख।’

जीवन की शुरुआत मध्य प्रदेश के ही बैतूल ज़‍िले में एक पाठशाला खोलकर, किन्तु सन् बयालीस के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में लगभग तीन साल का क़ैदी जीवन बिताने के बाद गांधी और उनके सहयोगियों के साथ रहे। कुछेक दिनों तक 'कल्पना’ (हैदराबाद) में। फ़‍िल्मों और आकाशवाणी में काम। इसके बाद सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय के हिन्दी खंड के सम्पादक। बाद में ‘गांधी मार्ग’ जैसी विशिष्ट पत्रिका के सम्पादक के रूप में साहित्यिक पत्रकारिता की एक रचनात्मक धारा का प्रवर्तन करते रहे।

20 फरवरी, 1985 को गृहनगर नरसिंहपुर में हृदयाघात से आकस्मिक मृत्यु।

भवानी प्रसाद मिश्र रचनावली के कुल आठ खंडों के अलावा कवि के अन्य चर्चित कविता-संग्रह हैं—‘गीत फ़रोश’, ‘चकित है दु:ख’, ‘गांधी पंचशती’, ‘बुनी हुई रस्सी’, ‘ख़ुशबू के शिलालेख’, ‘त्रिकाल संध्‍या’, ‘व्यक्तिगत’, ‘परिवर्तन जिए’, ‘तुम आते हो’, ‘इदम् न मम्’, ‘शरीर कविता : फ़सलें और फूल’, ‘मानसरोवर दिन’, ‘सम्प्रति’, ‘अँधेरी कविताएँ’, ‘तूस की आग’, ‘कालजयी’, ‘अनाम’ और ‘नीली रेखा तक’।

बाल कविताएँ—‘तुकों के खेल’; संस्मरण—‘जिन्होंने मुझे रचा’; निबन्ध-संग्रह—‘कुछ नीति कुछ राजनीति’।

1972 में उनकी कृति ‘बुनी हुई रस्सी’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ मिला। 1981-82 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘साहित्यकार सम्मान’ तथा 1983 में मध्य प्रदेश शासन के ‘शिखर सम्मान’ से उन्‍हें अलंकृत किया गया।

निधन : 20 फरवरी, 1985

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