मनोज रूपड़ा हमारे समय के ऐसे विलक्षण कथाकार हैं जिनकी कहानियाँ अतीत और वर्तमान के घातक टकराव के बीच किसी घटना की तरह सामने आती हैं। यथार्थ की जड़ता को ध्वस्त करने के लिए अमूमन वे अपने चरित्रों को किसी खास क्षण या मनःस्थिति में फ्रीज कर देते हैं और इसके बरक्स यथार्थ की गतिशीलता को बढ़ा देते हैं। कई बार यथार्थ और चरित्र दोनों ही गतिशील होते हैं पर परस्पर भिन्न दिशाओं में। वे अपने कथा-चरित्रों के बाहरी और भीतरी यथार्थ के बीच एक तनाव भरा गुंजलक रचते हैं जहाँ सब कुछ गुँथकर एक विस्फोट की तरह प्रकट होता है और तब ‘दफ़न’, ‘साज़-नासाज़’, ‘टॉवर ऑफ सायलेंस’ या ‘सेकेंड लाइफ’ जैसी कहानियाँ सामने आती हैं। स्मृति, स्वप्न, कल्पना और यथार्थ के सघन और मार्मिक तंतुओं से बुनी हुई उनकी कहानियों में दृश्य इतने चाक्षुस होकर सामने आते हैं कि पाठ के समय ये कहानियाँ कहीं भीतर दृश्यमान होकर अपने लिए एक नई ही अर्थवत्ता की तलाश करने लगती हैं।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Paper Back |
Publication Year | 2022 |
Edition Year | 2022, Ed. 1st |
Pages | 168p |
Translator | Not Selected |
Editor | Rakesh Mishra |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 18 X 12.5 X 1.5 |