Pracheen Kavi-Text Book

Edition: 2016, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
₹80.00
Out of stock
SKU
Pracheen Kavi-Text Book
Share:

हिन्दी के विशाल वाङ्मय के अन्तर्गत ब्रज, अवधी और खड़ी बोली तीनों का काव्य आता है; पर खड़ी बोली के प्रति अत्यधिक मोह होने के कारण हमने अपने को एक गौरवशाली परम्परा से विच्छिन्न कर लिया है और इस प्रकार अपने उत्तराधिकार से स्वयं वंचित हो गए हैं। अतीत के काव्य का अपना एक महत्त्व है, एक स्थान है, एक सौन्दर्य है।

आलोचक के लिए साहित्य के सम्पूर्ण विकास की जानकारी अपेक्षित है, अत: आधुनिक काव्य को समझने के लिए भी प्राचीन काव्य का अध्ययन अनिवार्य रहेगा—अपनी परम्परा के परिचय के लिए भी और उसे उचित परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने के लिए भी। यदि हम साहित्य के किसी भी काल से अपरिचित हैं, तो हम उसके किसी अन्य काल के प्रति भी न्याय नहीं कर सकेंगे। हमें अपने साहित्य की सभी युगों की ऊँचाइयों से परिचित होना चाहिए। मेरा विश्वास है कि जो व्यक्ति ‘रामचरितमानस’, ‘पद्मावत’ और ‘सूरसागर’ की गरिमा को नहीं पहचानता, वह ‘साकेत’, ‘कामायनी’ और ‘प्रिय-प्रवास’ के सम्बन्ध में भी अतिरंजित ढंग की बातें करेगा।

रीतिकालीन-काव्य चिन्तन-प्रधान भी है। चिन्तन जीवन की सीमाओं के भीतर से उसकी ज्वलन्त समस्याओं को लेकर हुआ है। जीवन में केवल भावना से काम नहीं चलता, उसके पथ की बाधाओं को पार करने के लिए बुद्धि के सहयोग की भी अपेक्षा है। जीवन की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के लिए जन-धारणाओं को अनुभवी लोगों के व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता पड़ती ही है।

इस समीक्षा ग्रन्थ में चन्द बरदाई से लेकर दीनदयाल गिरि तक सत्रह प्रमुख प्राचीन कवियों के जीवन और काव्य का विवेचन इस रूप में किया गया है, जिससे बीसवीं शताब्दी के पूर्व के सम्पूर्ण ब्रज और अवधी काव्य का सौन्दर्य आज के प्रबुद्ध पाठक के सामने प्रत्यक्ष होकर, कबीर और जायसी, सूर और तुलसी, देव और बिहारी आदि में हमारी अनुरक्ति नए सिरे से जगा सके।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 180p
Price ₹80.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Pracheen Kavi-Text Book
Your Rating
Vishvambhar ‘Manav’

Author: Vishvambhar ‘Manav’

विश्‍वम्‍भर मानव

विश्‍वम्‍भर ‘मानव’ का जन्‍म 2 नवम्‍बर, 1912 को बुलन्‍दशहर ज़‍िले के डिवाई नामक क़स्‍बे में हुआ था। सन् 1938 में उन्‍होंने आगरा विश्‍वविद्यालय से हिन्‍दी से एम.ए. किया और प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम उत्‍तीर्ण हुए।

उनके जीवन का अधिकांश समय अध्‍यापन में व्‍य‍तीत हुआ। पन्‍द्रह वर्ष उन्‍होंने क्‍वींस कॉलेज, काशी; आगरा कॉलेज, आगरा; गोकुलदास गर्ल्‍स कॉलेज, मुरादाबाद तथा इलाहाबाद डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद जैसी प्रसिद्ध संस्‍थाओं में हिन्‍दी प्रवक्‍ता के रूप में कार्य किया। दस वर्ष आकाशवाणी के इलाहाबाद-लखनऊ केन्‍द्रों से सम्‍बद्ध रहे। इसके अतिरिक्‍त हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन, लखनऊ सचिवालय, किताब महल, इलाहाबाद तथा एक हिन्‍दी साप्‍ताहिक में भी विविध रूपों में काम किया।

उनकी लगभग पैंतीस पुस्‍तकें प्रकाशित हैं, जिनमें आलोचना, उपन्‍यास, नाटक, कविता, डायरी, गद्यगीत आदि सम्‍म‍िलित हैं। उनके युग के चार प्रसिद्ध छायावादी कवियों—प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी पर स्‍वतंत्र समीक्षा ग्रन्‍थ लिखनेवाले वे पहले आलोचक थे। उनके ये ग्रन्‍थ समय-समय पर उत्‍तर-दक्षिण के बारह विश्‍वविद्यालयों में विशेष अध्‍ययन के लिए स्‍वीकृत रहे।

1973 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के उपरान्‍त उनका जीवन केवल स्‍वतंत्र लेखन को समर्पित रहा। 1980 में उनका देहावसान हुआ। 

 

 

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top