Poorva Madhyakalin Bharat Ka Samanti Samaj Aur Sanskriti

Edition: 2024, Ed. 8th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Poorva Madhyakalin Bharat Ka Samanti Samaj Aur Sanskriti-1

यह पुस्तक पूर्व-मध्यकालीन समाज एवं संस्कृति के स्वरूप पर प्रकाश डालती है। गुप्तोत्तरकाल में सामाजिक संकट के कारण भूमि अनुदानों में वृद्धि हुई और व्यापार और मुद्रा-प्रयोग की कमी तथा प्राचीन नगरों के पतन के कारण यह प्रथा बढ़ चली। इस पुस्तक में इस तथ्य को उजागर किया गया है। इसके साथ ही भारतीय सामन्तवाद की आलोचनाओं पर विचार करते हुए इसमें मध्यकालीन उत्पादन पद्धति एवं उत्पादन सम्बन्धों तथा राज्य-व्यवस्था के सामन्ती पक्ष का उद्घाटन करते हुए प्राचीनकाल तथा मध्यकाल के बीच के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। इसके अलावा इसमें जातियों की संख्या के बढ़ने और उनके बीच पैदा होनेवाले नए समीकरणों के कारणों की भी व्याख्या की गई है।

यह पुस्तक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त श्रेणीबद्ध, सोपानबद्ध सामन्ती संघटन के प्रभाव को तो दर्शाती ही है, तांत्रिक पंथ के उदय और प्रसार की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को भी प्रस्तुत करती है। इसका मुख्य आकर्षण इस बात में है कि इसमें साहित्यिक तथा अन्य स्रोतों के आधार पर सामन्ती मानसिकता के विश्लेषण के साथ-साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि जब-तब किसान सामन्ती व्यवस्था का विरोध कैसे करते थे। लेखक का विचार है कि सामन्तवाद के मूल में प्रभुतासम्पन्न भूस्वामियों के अधीन बेबस किसानों का बना रहना अत्यावश्यक है। इस अवधारणा के आलोक में मध्यकालीन कला, धर्म, साहित्य और जातिप्रथा को सही ढंग से परखा जा सकता है, साथ ही देश के सामन्ती अवशेषों की पहचान और उनके उन्मूलन द्वारा प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1996
Edition Year 2024, Ed. 8th
Pages 263p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Ramsharan Sharma

Author: Ramsharan Sharma

रामशरण शर्मा

जन्म : 1 सितम्बर, 1920; बरौनी (बिहार)।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (लंदन); आरा, भागलपुर और पटना के कॉलेजों में प्राध्यापन (1959 तक), पटना विश्वविद्यालय में इतिहास के विभागाध्यक्ष (1958-73), पटना विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर (1959), दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर तथा विभागाध्यक्ष (1973-78), जवाहरलाल नेहरू फ़ेलोशिप (1969), भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष (1972-77), भारतीय इतिहास कांग्रेस के सभापति (1975-76), यूनेस्को की इंटरनेशनल एसोसिएशन फ़ॉर स्टडी ऑफ़ कल्चर्स ऑफ़ सेंट्रल एशिया के उपाध्यक्ष (1973-78), बम्‍बई एशियाटिक सोसायटी के 1983 के ‘कैंपवेल स्वर्णपदक’ से सम्मानित (नवम्बर, 1987), अनेक समितियों-आयोगों के सदस्य और भारतीय इतिहास अनुसन्‍धान परिषद के नेशनल फ़ैलो और सोशल साइंस प्रोबिंग्स के सम्‍पादक मंडल के अध्यक्ष भी रहे।

प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : ‘विश्व इतिहास की भूमिका’, ‘आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता’, ‘भारतीय सामंतवाद’, ‘प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ’, ‘प्राचीन भारत में भौतिक प्रगति एवं सामाजिक संरचनाएँ’, ‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’, ‘भारत के प्राचीन नगरों का पतन’, ‘पूर्व मध्यकालीन भारत का सामंती समाज और संस्कृति’।

हिन्दी और अंग्रेज़ी के अतिरिक्त प्रो. शर्मा की पुस्तकें अनेक भारतीय भाषाओं और जापानी, फ़्रांसीसी, जर्मन तथा रूसी आदि विदेशी भाषाओं में भी प्रकाशित हुई हैं।

निधन : 20 अगस्त, 2011

 

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