तमिल साहित्य की पहली आंचलिक कृति के रूप में समादृत प्रस्तुत उपन्यास ‘पीढ़ियाँ’ (तमिल : तलैमुरैगळ) को मास्टर पीसेज़ ऑफ़ इंडियन लिटरेचर के यशस्वी सम्पादक डॉ. के.एम. जॉर्ज ने भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट कृति के रूप में स्थान दिया है।

तमिल के श्रेष्ठ महाकाव्य ‘शिलप्पाधिकारम’ के रचयिता कवि इलंगो ने जिस श्रेष्ठि-कुल के सामान्य जन को काव्य के केन्द्र में रखा था, उसी कुल की एक शाखा कालान्तर में धुर दक्षिण की ओर संक्रमण कर गई और कन्याकुमारी ज़िले में इरणियल परिसर के सात गाँवों में बसकर एलूर चेट्टी कहलाई। आधुनिक तमिल साहित्य के जाने-माने हस्ताक्षर नील पद् मनाभन ने इसी चेट्टी-समुदाय के सम्पूर्ण जीवन को, वर्तमान युग में अपनी ही रूढ़ियों और अन्धविश्वासों के मकड़जाल में फँसकर अपनी अस्मिता बनाए रखने के लिए उसके द्वारा किए जा रहे जद्दोजहद को इस उपन्यास में उकेरा है। उपन्यास की ख़ासियत यह है कि एक समुदाय-विशेष के आस्था-विश्वास, जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत विविध संस्कार, रूढ़ियाँ, अन्धविश्वास और वर्जनाएँ, लोरी और शोकगीत सहित ग्राम्य गीत, कर्ण-परम्परा से चली आ रही दन्तकथाएँ आदि पात्रों की अपनी बोली में अविकल रूप से इसमें दर्ज हैं। इस कारण यह उपन्यास नृविज्ञानियों और समाज-भाषावैज्ञानिकों के लिए अमूल्य दस्तावेज़ का काम दे सकता है।

लगभग सत्तर साल की कालावधि में व्याप्त तीन पीढ़ियों के इतिवृत्त के केन्द्र में है दिरवी का परिवार, जो अपनी नेकनीयती और भोलेपन के कारण समाज के सबल वर्ग के स्वार्थपूर्ण हथकंडों का शिकार बनता है। अपनी बहन पर लगाए गए झूठे इल्जाम के ख़िलाफ़ यौवन की दहलीज़ पर क़दम रख रहे दिरवी को अकेले ही एक धर्मयुद्ध लड़ना पड़ता है और इस संघर्ष में वह कैसे कामयाब होता है, यही इस उपन्यास का केन्द्रबिन्दु है।

उपन्यास में यह भी दिखाया गया है कि अर्थहीन रूढ़ियों और परम्परागत विश्वासों की दुहाई देकर नारी को घर की चहारदीवारी के अन्दर बन्द रखने की मूढ़ता जिस समुदाय में प्रचलित हो, उसमें रातोंरात आमूल-चूल परिवर्तन लाना सम्भव नहीं है। अभी एक विशाल रणांगण में एक लम्बा युद्ध लड़ना शेष है। कल्पना की रंगीनी और अतिरंजनापूर्ण वर्णनों से सर्वथा अस्पृश्य होकर भी कोई कृति इतनी रोचक और मर्मस्पर्शी हो सकती है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है नील पद् मनाभन की ‘पीढ़ियाँ’।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 248p
Translator H. Balsubrahamanyam
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Neel Padamnabhan

Author: Neel Padamnabhan

नील पद्मनाभन

जन्म: 26 अप्रैल, 1938

शिक्षा: बी.एससी. (इंजीनियरिंग); एफ़.आई.ई.।

तमिल के आधुनिक कथा-साहित्य के प्रसिद्ध लेखक नील पद्मनाभन विद्युत बोर्ड के चीफ़ इंजीनियर पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।कहानी, उपन्यास, उपन्यासिकाएँ, कविता-संग्रह, समीक्षा आदि विविध विधाओं में कई उत्कृष्ट रचनाओं के स्रष्टा श्री पद्मनाभन लेखकों के लेखक माने जाते हैं।

केन्द्रीयसाहित्य अकादेमी की कार्यकारिणी के सदस्य रहते हुए (1998-2002) इन्होंने तमिल विशेषज्ञ समिति का नेतृत्व किया। ‘राजा अण्णायलै पुरस्कार’, तमिलनाडु सरकार का ‘उत्कृष्ट पुरस्कार’, ‘तजांऊर तमिल विश्वविद्यालय पुरस्कार’ आदि से विभूषित नील पद्मनाभन साहित्य अकादेमी के ‘अनुवाद पुरस्कार’ से भी नवाजे जा चुके हैं। उपनास ‘इलै उदीर कालम’ (‘पतझड़’) पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’भी मिल चुका है। इनकी अनेक कृतियाँ अंग्रेज़ी, रूसी और फ़्रेंच के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में अनूदित हैं।

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