Paon Ka Sanichar

Author: Akhilesh Mishra
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Paon Ka Sanichar
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अपने समय के चर्चित पत्रकार और लेखक अखिलेश मिश्र के इस पहले उपन्यास में आज़ादी से पूर्व के उत्तर भारत के ग्रामीण परिवेश के सौहार्दपूर्ण सामाजिक जीवन का जीवन्त चित्रण हुआ है।

बटोहियों की बतकही के अद् भुत कथारस से आप्लावित यह आख्यान ग्रामीण जीवन के कई अनछुए पहलुओं से साक्षात्कार कराता है।

इसमें एक बच्चे के युवा होने तक के जीवनानुभव की कथा के माध्यम से देश-काल के हरेक छोटे-बड़े विडम्बनापूर्ण क्रिया-व्यवहारों, रूढ़ियों और अन्धविश्वासों पर मारक व्यंग्य किया गया है। पूरा उपन्यास इस विद्रोही ‘जनमदागी’ नायक की शरारतों (और शरारतें भी कैसी-कैसी—नुसरत की नानी की अँगनई में बैठकर चोटइया काट डालने, छुआछूत नहीं मानने की ज़िद में नीच जाति से रोटी लेकर खाने, उसी की गगरी से पानी पीने, गुलेल से निशाना साधने, तालाब में तैरने आदि की पूरी कथा) से भरा पड़ा है। यही विद्रोही मानसिकता आगे चलकर धार्मिक कर्मकांडों और अंग्रेज़ों की सत्ता के विरुद्ध संघर्ष में तब्दील हो जाती है।

इसमें तत्कालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति-नियति का जिस संवेदनापूर्ण ढंग से चित्रण हुआ है और उस स्थिति के ख़िलाफ़ लेखकीय व्यंग्य की त्वरा जिस रूप में उभरकर सामने आई है, वह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

इस उपन्यास को विरल कथ्य के साथ-साथ शैली लाघव और कहन की भंगिमा के लिए भी लम्बे समय तक याद रखा जाएगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Akhilesh Mishra

Author: Akhilesh Mishra

अखिलेश मिश्र

जन्म : 22 अक्तूबर, 1922; सेमरौता, रायबरेली (उ.प्र.)।

विश्वविद्यालय में अध्यापन के प्रस्तावों को ठुकराकर हिन्दी पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया, क्योंकि ‘जनता के पहरुए कूकुर’ की भूमिका पसन्‍द थी। ‘अधिकार’ से पत्रकारिता आरम्‍भ कर वे ‘स्वतंत्र भारत’, ‘दैनिक जागरण’, ‘स्वतंत्र चेतना’, ‘स्वतंत्र मत’ आदि दैनिक समाचार-पत्रों के सम्पादक रहे। साक्षरता अभियान में उनका अमूल्य योगदान रहा।

समय-समय पर उन्हें अनेक पुरस्कार-सम्मान दिए गए, लेकिन उन्होंने कोई सम्मान स्वीकार नहीं किया।

पुस्तकें : ‘धर्म का मर्म’, ‘पत्रकारिता : मिशन से मीडिया तक’ तथा ‘पाँवों का सनीचर के अलावा साक्षरता अभियान के तहत लिखी गई कई पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें कुछ हैं : ‘मुक़द्दर की मौत’, ‘गाँव में जादूगर’, ‘बन्‍द गोभी का नाच’, ‘प्रधान का इलाज’ आदि। कुछ अनुवाद भी प्रकाशित जिनमें ‘अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के मूल तत्त्व’ (मार्ग्रेट तथा हेराल्ड स्प्राउट कृत), ‘लालबहादुर शास्त्री’, ‘मार्क्स तथा आधुनिक सामाजिक सिद्धान्‍त’ (एलेन स्विंजवुड) उल्लेखनीय हैं।

शोध-पत्र : ‘ए फैलेसी फेस्ड’ (2002 में लखनऊ विश्वविद्यालय में जमा किया गया)।

अन्तिम समय तक लेखन के साथ-साथ जनान्‍दोलनों में भी सक्रिय भागीदारी। मानवाधिकारों के लिए सतत् संघर्षशील रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।

निधन : 22 नवम्बर, 2002 (लखनऊ)।

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