Pakistan Mein Yudhkaid Ke Ve Din

Edition: 2009, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Pakistan Mein Yudhkaid Ke Ve Din

‘पाकिस्तान में युद्धक़ैद के वे दिन’ लेखक के साथ घटित सच्ची घटना पर आधारित किताब है। घटना को चार दशक से ज़्यादा बीत चुके हैं लेकिन लेखक ने स्मृतियों के सहारे इस पुस्तक को लिखते हुए उन त्रासद क्षणों को एक बार पुनः जिया है और पूरी संजीदगी के साथ अपने तल्ख़ अनुभवों का जीवन्त चित्रण किया है।

1965 के भारत-पाक युद्ध में लेखक पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में सीमा रेखा के 35 किलोमीटर भीतर युद्धक़ैदी बने और भारतीय सेना के दस्तावेज़ों में लगभग एक वर्ष तक लापता ही घोषित रहे। एक दुश्मन देश में एक वर्ष की अवधि युद्धक़ैदी के रूप में बिताना कितना त्रासद और साहसिक कार्य था तथा वहाँ उन्हें किन-किन समस्याओं से रू-ब-रू होना पड़ा, इन सबकी तल्ख़ जानकारी इस किताब में पाठकों को मिलेगी।

यह किताब संशय और आशंकाओं से शुरू होती है तथा उम्मीद और आस्था की ओर बढ़ती है जो पाठकों को बेहद रोमांचित करेगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2005
Edition Year 2009, Ed. 2nd
Pages 171p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Brigadier Arun Vajpayee

Author: Brigadier Arun Vajpayee

ब्रिगेडियर अरुण वाजपेयी

जन्म : 12 जुलाई, 1943

शिक्षा : उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से एम.एस.सी., उस्मानिया यूनिवर्सिटी से एम.एम.एस. (मैनेजमेंट) की डिग्री प्राप्त की। प्रतिष्ठित डिफ़ेंस कॉलेज, वेलिंगटन से इन्होंने स्नातक किया और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से प्रारम्भिक सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। इन्हें सैन्य अधिकारियों को अध्यापन का भी अनुभव है।

कार्यानुभव : तैंतीस वर्षों तक भारतीय सेना के महत्त्वपूर्ण पदों—ब्रिगेड मेजर, जेनरल स्टाफ़ ऑफ़िसर ग्रेड (ऑपरेशन), ब्रिगेड जेनरल स्टाफ़ (ऑपरेशन), फ़िफ़्थ रॉयल मराठा बटालियन और 22 मराठा बटालियन के कमांडर—पर कार्य करनेवाले ब्रिगेडियर अरुण वाजपेयी 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में मोर्चे पर तैनात रहे। ’82 माउंटेन ब्रिगेड को भी ब्रिगेडियर के रूप में कमांड करनेवाले अरुण वाजपेयी 1965 के युद्ध में पाकिस्तान सीमा के 48 किलोमीटर भीतर घायलावस्था में युद्धक़ैदी के रूप में गिरफ़्तार कर लिए गए थे।

1977 में सैन्य सेवा से निवृत्ति के बाद कई पत्र-पत्रिकाओं में स्‍वतंत्र लेखन।

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