Nayi Kahani : Sandarbh Aur Prakriti-Text Book

ISBN: 9788126703777
Edition: 2019, Ed. 6th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
₹199.00
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9788126703777
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संसार के साहित्य में एक समर्थ विधा के रूप में अपनी पद-प्रतिष्ठा के लिए कहानी को बीसवीं शताब्दी तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। हिन्‍दी में तो उसका जन्म ही इस सदी में आकर हुआ। यही कारण है कि मनुष्य की नियति, उसके दुःख और उसकी जिजीविषा को अभिव्यक्ति देनेवाली अनेक कहानियों के सामने आने के बाद भी कहानी को लम्बे समय तक हलके-फुल्के मनोरंजन का साधन ही माना जाता रहा। हिन्‍दी में यह स्थिति और भी बाद तक रही और स्वातंत्र्योत्तर काल तक में वर्षों तक साहित्य-चिन्‍तन और आलोचना का केन्‍द्र कविता ही बनी रही। कहानी को लेकर अगर कोई चर्चा होती भी थी तो वह पाठ्यक्रमों के लिए तैयार किए जानेवाले संग्रहों की भूमिकाओं तक ही सीमित थी।

कहानी की गम्‍भीर चर्चा सन् 1995 के आसपास ‘कहानी’ पत्रिका के पुनर्प्रकाशन के बाद ही शुरू हुई। उसी समय इस बात को भी गम्‍भीरता से चिन्हित किया गया कि नई कहानी को समझने-समझानेवाले आलोचकों का प्रायः आभाव है। तब 1959 में ‘कहानी’ पत्रिका ने अपनी पहलक़दमी पर कहानी की तत्कालीन अवस्थिति के उद्घाटन के लिए स्वयं रचनाकारों को प्रोत्साहित किया जिससे नई कहानी के अनेक पहलू स्पष्ट हुए। उसके कुछ सालों बाद कहानी-आलोचना विभिन्न उतार-चढ़ावों से गुज़रती हुई एक ऐसी जगह भी पहुँची जहाँ ‘नई कहानी’ न सिर्फ़ प्रतिष्ठापित हो गई, बल्कि उसने एक प्रतिष्ठान का रूप भी धारण कर लिया। उसके बाद नेत्रृत्व की छीना-झपटी आती है और आते हैं नई कहानी बनाम नई कविता और नई कहानी बनाम सचेतन कहानी जैसे विवाद जिन्हें स्वस्थ आलोचना-विवेक का उदहारण नहीं कहा जा सकता। प्रस्तुत संकलन ‘नई कहानी’ से सम्बन्धित इसी वैचारिक आपाधापी और बेचैनी का जायज़ा लेने का एक प्रयास है। पुस्तक में तत्कालीन विमर्श के तमाम महत्‍त्‍वपूर्ण विचार-कोण समाहित किए गए हैं जो आज भी ‘नई कहानी’ की अवधारणा को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1973
Edition Year 2019, Ed. 6th
Pages 248p
Price ₹199.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Devishanker Awasthi

Author: Devishanker Awasthi

देवीशंकर अवस्थी

जन्म 5 अप्रैल, 1930 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़‍िले के गाँव सथनी बाला खेड़ा में। प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव तथा ननिहाल में हुई। ये 17 वर्ष की उम्र के थे तभी इनके पिता का देहावसान हो गया। बड़े होने के कारण इन्हें गम्भीर पारिवारिक स्थितियों के बीच दायित्वों का निर्वहन करते हुए अध्ययन को जारी रखना पड़ा। उच्च शिक्षा के लिए कानपुर गए। वहाँ डी.ए.वी. कॉलेज से 1953 में हिन्दी में एम.ए. (प्रथम श्रेणी) की डिग्री हासिल की और उसी वर्ष 23 अगस्त को वहीं हिन्दी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हो गए। 1960 में आगरा विश्वविद्यालय से आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निर्देशन में पीएच.डी. की। 1961 से मृत्युपर्यन्‍त दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्‍दी विभाग से सम्बद्ध रहे।

प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘आलोचना और आलोचना’, ‘रचना और आलोचना’, ‘भक्ति का सन्दर्भ’, ‘आलोचना का द्वन्द्व’, ‘अठारहवीं शताब्दी के ब्रजभाषा काव्य में प्रेमाभक्ति’, ‘कहानी विविधा’, ‘विवेक के रंग’, ‘नयी कहानी : सन्दर्भ और प्रकृति’, ‘साहित्य विधाओं की प्रकृति’ (आलोचना); ‘हमका लिख्यो है कहा’ (अवस्थी जी के नाम मित्रों के पत्र); ‘कविता—1954’ का अजित कुमार के साथ सम्‍पादन। ‘कलजुग’ पत्रिका का प्रकाशन व सम्‍पादन।

13 जनवरी, 1966 (एक सड़क दुर्घटना में) को दिल्‍ली में देहावसान।

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