नारी प्रश्न के असंख्य आयाम हैं। कुछ प्रश्न ऐसे हैं, जो काल और स्थान की सीमाओं से बँधे हुए हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जो काल के दीर्घ प्रवाह के बीच से चिरन्तन प्रश्नों के रूप में सामने आए हैं। काल और स्थान-निरपेक्ष ये प्रश्न हर देश के नारी समाज की मानवीय अस्मिता से जुड़े हुए हैं। एक वृहत्तर मानव समाज में ऐसे प्रश्नों की अपनी नारी-पहचान के बावजूद ये प्रश्न किसी संकीर्णता के द्योतक नहीं हैं, बल्कि वास्तविक अर्थों में मानव समाज को ही और अधिक मानवीय बनाने की निरन्तर जारी प्रक्रिया के अंग हैं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नारीवाद के अन्दर की अनेक परस्पर विरोधी धाराओं के बावजूद, नारी-मुक्ति और उससे जुड़े हुए मानव-मुक्ति के बहुत से महत्त्वपूर्ण प्रश्न इस संघर्ष के बीच से उभरकर सामने आए हैं। भारत का नारी आन्दोलन भी ऐसे तमाम प्रश्नों की अवहेलना नहीं कर सकता।

सरला माहेश्वरी की यह पुस्तक हिन्दी में अपने क़िस्म की पहली पुस्तक है, जिसमें बहुत व्यापक और गहन अध्ययन के ज़रिए नारी आन्दोलन की अन्तरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि और उसके आधार पर निर्मित दृष्टि की रोशनी में नारी जीवन से जुड़े कई ज़रूरी सामाजिक प्रश्नों पर गम्भीरता से रोशनी डाली गई है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1998
Edition Year 2007, Ed. 2nd
Pages 196p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Sarla Maheshwari

Author: Sarla Maheshwari

सरला माहेश्वरी

राजस्थान के बीकानेर में जन्म। साहित्यिक-राजनीतिक परिवार में पोषित। बचपन के ये संस्कार परिपक्व हुए कलकत्ता के एक और मार्क्सवादी राजनीतिक-साहित्यिक परिवार के साथ जुड़कर। कलकत्ता में ही सक्रिय राजनीतिक जीवन की शुरुआत। कई चुनाव लड़े। सांसद बनीं। ‘कलम’ पत्रिका के प्रकाशन के साथ जुड़ीं। ‘स्वाधीनता’ साप्ताहिक के सम्पादकीय विभाग से सम्बद्ध तथा सामयिक राजनीतिक-सामाजिक प्रश्नों पर नियमित लेखन। महिला आन्दोलन के साथ घनिष्ठ रूप से सम्पृक्त। महिलाओं की पत्रिका ‘साम्या’ से सम्बद्ध।

इस बीच ‘महिलाओं की स्थिति’, ‘विकास और पर्यावरण’, ‘नई आर्थिक नीति’, ‘महँगाई और उपभोक्ता संरक्षण’, ‘शेयर घोटाला’, ‘हवाला कांड’ पर पुस्तिकाएँ प्रकाशित। विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लेखन। कई कविता पुस्तकें प्रकाशित। कई पुस्तकों का अनुवाद।

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