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Mithak Aur Swapna

Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Mithak Aur Swapna

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इस पुस्तक में कई गवेषणाओं में से कुछेक वैदिक आख्यान को शैवदर्शन में विश्रान्त करने, तथा कुछ सर्गों के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक नामकरण के कारण ‘कामायनी’ में जिस प्रकार मानवता का इतिहास, मनुष्य का मनोवैज्ञानिक क्रमविकास, भारतीय दर्शन का आनन्दवादी उत्कर्ष संस्थापित करने के चलन हुए हैं, उन्हें त्रुटिपूर्ण, भ्रामक एवं अन्तरालों से असंगत पाया गया।

पन्द्रह सर्गों के पाँच सर्ग-त्रिकोणों की संरचना वाली इस प्रबन्ध-गाथा में भारतीय और पाश्चात्य महाकाव्य-लक्षण अनुपस्थित हैं। यह लिरिकल मुक्तकों के कदम्बवाला एक ‘गीत-कामायनीयम्’ है। इसकी जीवनी का भी ‘कामना’ तथा ‘एक घूँट’ द्वारा विकास ढूँढ़ते हुए, तथा पांडुलिपि एवं प्रकाशित प्रति की तुलना और पाठालोचन करते हुए, प्रसाद की गूढ़ सृजन-प्रक्रिया भी उद्घाटित की गई है।

पाया गया कि तीन फंतासियों (नर्तित नटेश, त्रिदिक् विश्व, आनन्द लोक) द्वारा स्वप्न में किस तरह छलाँग लगाई गई है; कैसे देवताओं के स्वर्ग, मनुष्यों के नगर तथा प्रकृति-सुन्दरी की पूर्णकला के वस्तुपरक लोक वाले मिथक का सौन्दर्यदर्शन हुआ है; तथा कौन-से द्विपर्ण-विरोधों एवं युग्म-द्वन्द्वों (प्रलय-ज्वाला, कण-क्षण, कर्म-काम, संघर्ष-समाधि, अधिनायक-जनता, इच्छा-ज्ञान, पुरुष-प्रकृति) का काव्यदर्शन तथा दार्शनिक काव्य में रूपान्तरण किया गया है।

समानान्तरता में (तब) खोजे गए मुअनजोदड़ो को सारस्वत नगर में; स्वप्न-संघर्ष सर्गों को राष्ट्रीय-मुक्ति संघर्ष और स्वार्थ-केन्द्रित भीषण व्यक्तित्ववाद की आलोचना में; अन्ततः शैव त्रिपुर को आले-दुआले सामन्तीय-उपनिवेशवादी-पूँजीवादी दुर्व्यवस्थाओं में भी दूरागत प्रक्षेपण होते परिलक्षित पाया गया है। इसलिए अगर प्रसाद लम्बी आयु पाते तो वे ‘ध्रुवस्वामिनी’ सिंड्रोम से प्रतिश्रुत होकर यथार्थोन्मुखी होते चले जाते।

निष्कर्षतः ‘कामायनी’ छायावाद का सर्वोत्तम हीरक किरीट है जो भव्यवृत्तान्तों वाला एक लिरिकल प्रबन्ध-कदम्ब भी है।

 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2007
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 228p
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Ramesh Kuntal Megh

Author: Ramesh Kuntal Megh

रमेश कुन्तल मेघ

पचहत्तर-पार।

स्वदेश के लगभग सोलह शहरों के वसनीक यायावर तथा विदेश के पाँच देशों (यूगोस्लाविया, इटली, सोवियत रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका) के यात्रिक।

जाति-धर्म-प्रांत-सांप्रदायिकता से निरपेक्ष।

संस्कारत : चित्रकार; फिर विज्ञान में बंदरछलाँग लगाई। अंतत: माक्र्सीय-सांस्कृतिक पैरामीटर पर आलोचिंतना, सौंदर्यबोधाशास्त्र, देहभाषा मिथक-आलेखकारी के चतुरंग के शिल्पी-भोक्ता-रसिक-द्रष्टा।

शिक्षा : बी.एस-सी.; एम.ए.; पी-एच.डी.।

दीक्षा : बी.एन.एस.डी. कॉलेज, कानपुर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी।

अध्यापन : महाराजा कॉलेज आरा (बिहार); पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़; पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर दोआबा कॉलेज, जालंधर; रीजनल सेंटर, एस.डी. कॉलेज, अंबाला कैंट; गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर; यूनिवर्सिटी ऑफ आरकंसास एट, पाईन ब्लफ, यू.एस.ए.।

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