बचपन जीवन की अन्यतम अवस्था है—निष्पाप, निष्कलुष और निष्काम। पर आज कहीं-न-कहीं बचपन अपनी मासूमियत खो रहा है, उसके निसर्ग सौन्दर्य पर कृत्रिमता का वर्क चढ़ाया जा रहा है। बहरहाल, इस बचपन की नींव पर जीवन की जो इमारत खड़ी हो रही है, उसमें उन्नति-प्रगति-प्रशस्ति के पंख तो हैं किन्तु करुणा और कोमलता की पदचाप कहीं नहीं सुनाई देती। यह बाल गीतों की पुस्तक ‘मिलकर रहना’ इसी की प्रतिपूर्ति करती है।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2016 |
Edition Year | 2016, Ed. 1st |
Pages | 24p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20.5 X 28 X 1 |