व्यक्ति-विकास की एक पारम्परिक धारणा रही है—या तो वह आनुवंशिक से होता है या परिवेशजन्य। लेकिन इससे परे जाकर मनुष्य-विकास की यात्रा में यदि किसी पर व्यक्ति, विचार या ग्रन्थ का प्रभाव होता है तो वह वंश और परिवेश को भी लाँघकर एक अपनी मिसाल क़ायम करता है। इसका जीता-जागता उदाहरण डॉ. भालचंद्र मुणगेकर की यह आत्मकथा है : ‘मेरी हक़ीक़त’। यह आत्मकथा लेखक के होश सँभालने तक के अठारह वर्ष की ऐसी विकासगाथा है जो ‘दलित’ सीमा को लाँघकर मनुष्य की जिजीविषा का एक अदम्य स्रोत बनकर उभर आती है।

दलित बस्ती में जन्म, ‘युवक क्रान्ति दल’ में जुझारू युवापन। प्रौढ़ावस्था में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर, महात्मा फुले, कार्ल मार्क्स, वि.स. खांडेकर जैसी शख़्सियतों के जीवन, साहित्य और दर्शन का उनके जीवन पर अमिट प्रभाव पड़ा। रिजर्व बैंक के वरिष्ठ अधिकारी, अर्थशास्त्र के प्राध्यापक, मुम्बई विश्वविद्यालय के पहले दलित कुलपति और उससे भी आगे जाकर भारतवर्ष के योजना आयोग के सदस्य बनने तक का करिश्मा कोई जादुई चमत्कार नहीं है, बल्कि इसके पीछे जाति और अस्पृश्यता निर्मूलन, स्त्री-पुरुष समानता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक समाजवाद और मानवतावाद जैसे मूल्यों की पक्षधरता का कैनवस विस्तार लिए हुए है।

‘मेरी हक़ीक़त’ आत्मकथा व्यक्ति-विकास में मूल्यों, विचारों, व्यक्ति-प्रभावों, जीवनधारा व दर्शन की भूमिका को रेखांकित करती है और इसीलिए न सिर्फ़ वह प्रेरक बन जाती है अपितु पठनीय भी।

—सुनीलकुमार लवटे

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Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2010
Pages 200p
Translator Girish Kashid
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Author: Bhalchandra Mungekar

भालचंद्र मुणगेकर

जन्म : 2 मार्च, 1946

भालचंद्र मुणगेकर जाने-माने शिक्षाविद् तथा वैकासिक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र में एम.ए. तथा पीएच.डी. की उपाधियाँ मुम्बई विश्वविद्यालय से ग्रहण कीं। उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर पर लगातार 26 वर्षों तक अध्यापन किया। अर्थशास्त्र विभाग में ‘सेंटर ऑफ़ एडवांस स्टडीज़’ के अध्यक्ष रहे। भारतीय कृषि विकास के क्षेत्र में अर्थशास्त्रीय योगदान के लिए उन्हें ‘चाइनीज़ अकादमी ऑफ़ सोशल साइंस’ ने 1977 में चीन गणराज्य की यात्रा पर आमंत्रित किया।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचार-दर्शन पर उनकी विशेष पकड़ है। उन्होंने अपनी इसी अन्तःप्रेरणा से ‘डॉ. अम्बेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज’ की स्थापना की और उसका अध्यक्ष-पद सँभाला।

अकादमिक तथा व्यावसायिक पत्रिकाओं एव जर्नल्स ने इनके आलेखों को संकलित और प्रकाशित किया है। शिक्षा तथा समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए उन्हें कई संस्थानों द्वारा सम्मान तथा मानद उपाधियाँ दी गई हैं, जिनमें ‘विशिष्ट शिक्षाविद् पुरस्कार’, मानद डी.लिट्., ‘भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर पुरस्कार’ तथा ‘मिलिंद समता पुरस्कार’ प्रमुख हैं।

वह ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस स्ट्डीज़, शिमला’ और यूनिवर्सिटी ग्रैंड कमीशन के भी अध्यक्ष रहे हैं।

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