Maupassan Ki Sankalit Kahaniyan : Vol. 1

Translator: Narendra Saini
Edition: 2003, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Maupassan Ki Sankalit Kahaniyan : Vol. 1

साहित्य के क्षितिज पर मोपासां मानो एक धूमकेतु के समान प्रकट हुआ था। महज़ तैंतालीस वर्षों की छोटी-सी ज़ि‍न्दगी उसे जीने को मिली। सिर्फ़ बारह वर्षों का उसका साहित्यिक जीवन रहा। लेकिन इस छोटी-सी अवधि में उसने तीन सौ से अधिक कहानियाँ और छह उपन्यास लिख डाले। इसके अतिरिक्त इस दौरान उसके नाटकों, यात्रा-वृत्तान्तों और लेखों के कई संकलन प्रकाशित हुए। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में, न सिर्फ़ फ़्रांस में बल्कि पूरे यूरोप में तथा रूस और अमेरिका में साहित्य के सुधी पाठकों के बीच सबसे अधिक पढ़े जानेवाले फ़्रांसीसी लेखक बाल्ज़ाक और मोपासां थे। फ्लाबेअर, स्तान्धाल और मोपासां—इन तीन फ़्रांसीसी लेखकों की कृतियों को पढ़ने की सलाह लेव तोल्स्तोय युवा लेखकों को अकसर दिया करते थे।

मोपासां का कथा-संसार 1870 से 1890 के बीच के फ़्रांसीसी जीवन का एक विशद चित्र विराट कैनवस पर प्रस्तुत करता है जिसके अलग-अलग हिस्सों की सूक्ष्मताएँ अलग से ग़ौरतलब हैं। मोटे तौर पर मोपासां की कहानियों को विषय-वस्तु की दृष्टि से पाँच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है : (i) फ़्रांस-जर्मनी युद्ध विषयक कहानियाँ, (ii) नॉर्मन किसानों के जीवन से जुड़ी कहानियाँ, (iii) नौकरशाही के बारे में कहानियाँ, (iv) सेन नदी के तटवर्ती जीवन की कहानियाँ और (v) विभिन्न सामाजिक वर्गों की भावनात्मक-संवेगात्मक समस्याओं से सम्बन्धित कहानियाँ। यूँ तो इन सभी प्रवर्गों में कुछ आम चलताऊ रचनाओं के साथ ही अनेक बेहद सशक्त-शानदार रचनाएँ मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश आलोचकों की यह राय रही है कि नॉर्मंडी के किसानों के जीवन के बारे में मोपासां ने सर्वाधिक आधिकारिक एवं वस्तुपरक ढंग से लिखा है। इस संकलन की कहानियाँ मोपासां के कथाकार का एक समग्र चित्र बनाने में आपकी मददगार होंगी।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2003
Edition Year 2003, Ed. 1st
Pages 182p
Translator Narendra Saini
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Guy De Maupassant

Author: Guy De Maupassant

गे द मोपासां

जन्म : 5 अगस्त, 1850; दिएप के निकट शैतो द मिरोमेस्निल, फ़्रांस।

फ़्रांस में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में आज भी मोपासां को अब तक का सर्वश्रेष्ठ फ़्रांसीसी कथाकार माना जाता है।

फ़्लाबेअर उनकी प्रतिभा पर मुग्ध थे। ज़ोला उनके ज़बर्दस्त प्रशंसक थे। तुर्गनेव और तोलस्तोय ने उनकी रचनाओं की मुक्त कंठ से सराहना की। मोपासां के ये सभी समकालीन वरिष्ठ और महान लेखक इस बात पर सहमत थे कि जीवन की दारुण त्रासदियों, विडम्बनापूर्ण विसंगतियों, आन्तरिक  सौन्दर्य और नाटकीय आकस्मिकताओं के चित्रण के मामले में गे द मोपासां एक बेजोड़ कलाकार थे। चेख़व, कुप्रिन, गोर्की और लुनाचार्स्की ने जीवन के यथार्थ पर उनकी अचूक पकड़ की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। मोपासां की अगली पीढ़ी के प्रसिद्ध फ़्रांसीसी लेखक अनातोल फ़्रांस उन्‍हें अपने देश के सबसे महान और समर्पित क़ि‍स्सागो मानते थे जिनकी सशक्त, सरल और स्वाभाविक भाषा में असली फ़्रांसीसी मिट्टी की ख़ुशबू मौजूद थी। उनके अनुसार, फ़्रांसीसी लोगों के जीवन और मनोविज्ञान पर मोपासां की पकड़ अचूक थी, उनकी वस्तुपरकता और सुस्पष्टता ने कंजूस किसानों, पियक्कड़ नाविकों, भ्रष्ट स्त्रियों, ओछे क्लर्कों के जीवन की आत्मिक रिक्तता, कुरूपता, नीरसता और दु:खों का चित्रण वास्तविकता से भी अधिक वास्तविक रूप में किया। आडम्बरप्रिय बुर्जुआओं के खोखलेपन को उन्‍होंने निर्ममता से उजागर किया। यह सब कुछ करते हुए उनके प्रहार का लक्ष्य बुर्जुआ सामाजिक ढाँचा होता था और साथ ही उनका अन्तर्निहित आशावाद जीवन के उज्ज्वल पक्षों की, मानवीय सारतत्त्व की कभी भी अनदेखी नहीं करता था।

निधन : 6 जुलाई, 1893

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