Log Jo Mujhmein Rah Gaye-Paper Back

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एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है और अलग-अलग जींस और जज़्बात के लोगों से मिलती है। कहीं गे, कहीं लेस्बियन, कहीं सिंगल, कहीं तलाक़शुदा, कहीं भरे-पूरे परिवार, कहीं भारत से भी ‘बन्द समाज’ के लोग। कहीं जनसंहार का—रोंगटे खड़े करने और सबक देने वाला—स्मारक भी वह देखती है जिसमें क्रूरता और यातना की छायाओं के पीछे ओझल बेशुमार चेहरे झलकते हैं। 

उनसे मुख़ातिब होते हुए उसे लगता है, सब अलग हैं लेकिन सब ख़ास हैं। दुनिया इन सबके होने से ही सुन्दर है। क्योंकि सबकी अपनी अलहदा कहानी है। इनमें से किसी के भी नहीं होने से दुनिया से कुछ चला जाएगा। अलग-अलग तरह के लोगों से कटकर रहना हमें बेहतर या श्रेष्ठ मनुष्य नहीं बनाता। उनसे जुड़ना, उनको जोड़ना ही हमें बेहतर मनुष्य बनाता है; हमारी आत्मा के पवित्र और श्रेष्ठ के पास हमें ले जाता है। ऐसे में उस लड़की को लगता है—मेरे भीतर अब सिर्फ़ मैं नहीं हूँ, लोग हैं। लोग—जो मुझमें रह गए! 

लोग जो मुझमें रह गए—‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ कहने और जीने वाली अनुराधा बेनीवाल की दूसरी किताब है। यह कई यात्राओं के बाद की एक वैचारिक और रूहानी यात्रा का आख्यान है जो यात्रा-वृत्तान्त के तयशुदा फ्रेम से बाहर छिटकते शिल्प में तयशुदा परिभाषाओं और मानकों के साँचे तोड़ते जीवन का दर्शन है।

‘यायावरी आवारगी’ श्रृंखला की यह दूसरी किताब अपनी कंडीशनिंग से आज़ादी की एक भरोसेमन्द पुकार है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 224p
Price ₹299.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Sarthak (An imprint of Rajkamal Prakashan)
Dimensions 20 X 13 X 1.5
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Anuradha Beniwal

Author: Anuradha Beniwal

अनुराधा बेनीवाल

अनुराधा बेनीवाल का जन्म हरियाणा के रोहतक ज़िले के खेड़ी महम गाँव में 1986 में हुआ। इनकी 12वीं तक की अनौपचारिक पढ़ाई घर में हुई। 15 वर्ष की आयु में ये राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिता की विजेता रहीं। 16 वर्ष की आयु में विश्व शतरंज प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद इन्होंने प्रतिस्पर्धी शतरंज खेल की दुनिया से ख़ुद को अलग कर लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से अंग्रेज़ी विषय में बी.ए. (ऑनर्स) करने के बाद एलएलबी की पढ़ाई की, फिर अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. भी किया। इस दौरान ये तमाम खेल-गतिविधियों से कई भूमिकाओं में जुड़ी रहीं। फ़िलहाल ये लन्दन में एक जानी-मानी शतरंज कोच हैं और रोहतक में लड़कियों के सर्वांगीण व्यक्तित्व-विकास के लिए ‘जियो बेटी’ नाम से एक स्वयंसेवी संस्था भी चला रही हैं। मिज़ाज से बैक-पैकर अनुराधा अपनी घुमक्कड़ी का आख्यान ‘यायावरी आवारगी’ नामक पुस्तक-शृंखला में लिख 

रही हैं। ‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ शृंखला की पहली किताब है। उनकी इस किताब को ‘राजकमल सृजनात्मक गद्य सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

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