Kingmakers

Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
10% Off
Out of stock
SKU
Kingmakers

अठारहवीं सदी में भारत ने राजनैतिक अव्यवस्था, प्रशासनिक दुर्बलता, आर्थिक अवनति और सांस्कृतिक पतन की अकल्पनीय परिस्थितियों का सामना किया। उस दौर के कई बादशाह विलासी और निहायत अदूरदर्शी रहे। ऐसे में व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के मामलों में वृद्धि हुई, जबकि जनकल्याण की अवधारणा पृष्ठभूमि में चली गई थी।

ऐसे समय में सैयद बन्धुओं—सैयद अब्दुल्ला ख़ान और सैयद हुसैन अली ख़ान  का उत्कर्ष हुआ। अपने पराक्रम और वीरता के लिए विख्यात ये दोनों भाई मुग़लों के वफ़ादार थे। उनको अपनी विवशता का वास्ता देकर, सत्ता-संघर्ष में भावनात्मक रूप से शहज़ादे फ़र्रूखसियर ने उन्हें अपने पक्ष में कर लिया था। अगले सात सालों तक इन भाइयों का ऐसा सिक्का चला कि बादशाह से कहीं बेहतर स्थिति उनकी रही। शाही विरासत के फ़ैसलों के साथ ही रोज़मर्रा के कामों में भी उनकी निर्णायक दख़ल रही। वस्तुत: वे मुल्क की बादशाहत को बनाने और बिगाड़ने वाले बन बैठे थे।

लेकिन इतना शक्ति सम्पन्न होने पर भी सैयद बन्धुओं को क्या मिला? एक की धोखे से हत्या कर दी गई जबकि दूसरे को ज़हर दे दिया गया। शाही सेना की अग्रिम पंक्ति में रहकर, शत्रुओं से टक्कर लेने वाले वे दोनों भाई, मुग़ल बादशाहों के महलों की राजनीति का शिकार तो नहीं हो गए थे? गलतियाँ तो उनकी भी रही होंगी!

इतिहास के उत्तर मुग़लकालीन इन अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर तलाशने की कोशिश करती यह पहली किताब है, जिसमें ‘किंगमेकर्स’ के रूप में मशहूर सैयद भाइयों के व्यक्तित्व और कृतित्व, उनके उत्कर्ष और पराभव की परतों को उघाड़ने के साथ ही मुग़ल वंश के पतन की स्थितियों पर भी पर्याप्त प्रकाश तथ्यसंगत डाला गया है। यह किताब भारतीय इतिहास के उस कालखंड का एक ऐसा दस्तावेज़ है, जिसकी अभी तक प्राय: अनदेखी की गई है। लेखक ने इस किताब को उपन्यास जैसी रोचक शैली में लिखा है, परन्तु इतिहास की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता भी बनाए रखी है।

—प्रो. शशि प्रभा

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 232p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Kingmakers
Your Rating
Rajgopal Singh Verma

Author: Rajgopal Singh Verma

राजगोपाल सिंह वर्मा

राजगोपाल सिंह वर्मा का जन्म 14 मई, 1957 को मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने पत्रकारिता तथा इतिहास में स्नातकोत्तर किया है।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘गोरों का दुस्साहस’, ‘चिनहट : 1857 : संघर्ष की गौरव-गाथा’, ‘औपनिवेशिक काल की जुनूनी महिलाएँ’, ‘360 डिग्री वाला प्रेम’, ‘1857 का शंखनाद : उत्तर दोआब के लोक का संघर्ष’ (उपन्यास); ‘अर्थशास्त्र नहीं है प्रेम’, ‘तारे में बसी जान’ (कहानी-संग्रह); ‘इश्क लखनवी मिजाज का’ (ऐतिहासिक प्रेम कहानियाँ); ‘जाने वो कैसे लोग थे : 1857 के क्रांतिकारी’ (क्रांतिवीरों की प्रेरणादायक कहानियाँ); ‘बेगम समरू का सच’, ‘दुर्गावती : गढ़ा की पराक्रमी रानी’, ‘जॉर्ज थॉमस : हांसी का राजा’, ‘The Lady of Two Nation : Life and Times of Ra’nna Begum’ (जीवनी); ‘यह वो दुबई तो नहीं’ (सामयिक घटनाओं पर केन्द्रित)।

उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की साहित्यिक पत्रिका ‘उत्तर प्रदेश’ का पाँच वर्ष तक सम्पादन किया तथा केन्द्र सरकार के अधीन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और लघु उद्योग मंत्रालय की पत्रिकाओं के सम्पादकीय दायित्व का भी निर्वहन किया। ‘दैनिक जागरण’, ‘जनसत्ता’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘कादंबिनी’, ‘अहा! जिन्दगी’, ‘कथादेश’, ‘कथाक्रम’, ‘अभिनव इमरोज’ समेत कई पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।

उन्हें ‘पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान’, ‘पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ सम्मान’, ‘कमलेश्वर स्मृति कथा सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

ई-मेल : rgsverma.home@gmail.com

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top