Khwab Sa Kuchh

100%
(1) Reviews
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
As low as ₹262.50 Regular Price ₹350.00
25% Off
In stock
SKU
Khwab Sa Kuchh
- +
Share:

उपन्यास पढ़ना शुरू करते ही, यह महसूस होने लगता है कि यह एक कवि की गद्यकथा है। बेशक इसकी लय गति थोड़ी तीव्र है, और आँखों के सामने उपस्थित होने वाले दृश्य, तुरन्त कथा प्रवाह में बिला जाते हुए लगते हैं। लेकिन इसकी गति में मौजूद सहज घुलनशीलता स्मृति में बहुत कुछ बचाए रखती है, कि हम उसे अपने अनुभवों के आईने में अपने अंतरंग और आत्मीय की तरह सजीवता में देख सकें और तब 'ख्वाब सा कुछ' में 'सच सा कुछ' देखते हुए हम जान पाते हैं, कि शायद सच से बढ़कर दूसरा कोई सपना है भी नहीं।

गाँव और कस्बे के यथार्थ जीवन को उपन्यासकार, कुछ इस तरह से लिखता है कि, वह ब्यौरों के चित्रण में सिमटने और सीमित हो जाने के बदले, विडम्बना और आत्म-व्यंग्य से समृद्ध रूपकीय विन्यास जैसा लगने लगता है। चरित्र, कथानक या सामाजिक परिवेश, इस व्यापक व्यंजकता में एकदम घुले मिले लगते हैं। ऐंठबहार, घुमनाहा और बुतरू के परिवार का अतीत और वर्तमान, लेखक की लिखत में कुछ इस तरह विन्यस्त हो सका है कि हम उन्हें उनसे भिन्न किसी भी परिवार और परिवेश में देख और पा सकते हैं।

उपन्यास में यौन वर्जना ग्रस्त भारतीय समाज के जो रूप उभरते हैं, वे भी केवल यथार्थ निर्देश नहीं करते, बल्कि पूरे समाज की आत्मरुद्धता की ओर सार्थक संकेत करते प्रतीत होते हैं। लेकिन उपन्यास के पाठ में सबसे महत्त्वपूर्ण उसकी पठनीयता है जो विविध मानसिकता के पाठकों को भी बाँधे रखने की अजब किस्सागोई से सम्पन्न है। 

—प्रभात त्रिपाठी

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Khwab Sa Kuchh
Your Rating
Sanjay Manharan Singh

Author: Sanjay Manharan Singh

संजय मनहरण सिंह

संजय मनहरण सिंह का जन्म 28 दिसम्बर, 1970 को मानपुर, शहडोल, मध्यप्रदेश में हुआ। उन्होंने ‘इतिहास’ और ‘ग्राम विकास’ में परास्नातक और स्पेनिश-हिन्दी अनुवाद में एडवांस डिप्लोमा किया। नौकरी के सिलसिले में दिल्ली, रायगढ़, मुम्बई, बंगलुरु और वर्धा आदि शहरों में रहे। फिलहाल महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर रायगढ़, छत्तीसगढ़ में निवास। ‘देह की लोरियाँ’ उनका प्रकाशित कविता-संग्रह है।

‘कथादेश’, ‘पक्षधर’, ‘परिकथा’, ‘कथाक्रम’, ‘वागर्थ’ आदि पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ और कविताएँ प्रकाशित हैं। विपाशा अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top