Kalaa Ki Zaroorat

Author: Ernst Ficher
Translator: Ramesh Upadhyay
Edition: 2019, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Kalaa Ki Zaroorat
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ऑस्ट्रिया के विश्वविख्यात कवि और आलोचक अंर्स्ट फ़िशर की पुस्तक ‘कला की ज़रूरत’ कला के इतिहास और दर्शन पर मार्क्सवादी दृष्टि से विचार करनेवाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। कला आदिम युग से आज तक मनुष्यों की ज़रूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, पर उन्हें कला की ज़रूरत क्यों होती है? आख़िर वह कौन-सी बात है जो मनुष्यों को साहित्य, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला आदि के विभिन्न रूपों में जीवन की पुनर्रचना के लिए प्रेरित करती है? इस आधारभूत प्रश्न पर विचार करने के लिए लेखक ने आदिम युग से आज तक के और भविष्य के भी मानव-विकास को ध्यान में रखकर सबसे पहले तो कला के काम और उसके विभिन्न उद्गमों पर विचार किया है और फिर विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला है कि मौजूदा पूँजीवादी तथा समाजवादी व्यवस्थाओं में कला की विभिन्न स्थितियाँ किस प्रकार की हैं। इस विचार-क्रम में वे तमाम प्रश्न आ जाते हैं जो आज सम्पूर्ण विश्व में कला-सम्बन्धी बहसों के केन्द्र में हैं।

आज का सबसे विवादास्पद प्रश्न कला की अन्तर्वस्तु और उसके रूप के पारस्परिक सम्बन्धों का है। अंर्स्ट फ़िशर ने इन दोनों के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध को मार्क्सवादी दृष्टि से सही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने-समझाने का एक बेहद ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। आज भारतीय साहित्य के अन्तर्गत जो जीवंत बहसें चल रही हैं, उनकी सार्थकता को समझने तथा उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाने में फ़िशर द्वारा प्रस्तुत विवेचन अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है।

साहित्य और कला के प्रत्येक अध्येता के लिए वस्तुतः यह एक अनिवार्य पुस्तक है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1990
Edition Year 2019, Ed. 4th
Pages 248p
Translator Ramesh Upadhyay
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Author: Ernst Ficher

अंर्स्ट फ़िशर

जन्म : 1899 ई., ऑस्ट्रिया के एक सैनिक परिवार में।

उन्होंने भी एक सैनिक के रूप में ही अपना जीवन आरम्भ किया, किन्तु उनकी ज्ञान-पिपासा उन्हें ग्राज़ नामक नगर में ले गई, जहाँ उन्होंने दर्शनशास्त्र का अध्ययन और एक कारख़ाने में श्रमिक के रूप में काम किया। यहीं वे मज़दूर आन्दोलन से जुड़े। 1927 से 1934 तक उन्होंने विएना में मज़दूरों के एक अख़बार के सम्पादकीय विभाग में काम किया। इसी बीच उन्होंने सामाजिक जनवादी पार्टी के अन्दर ही वामपंथी विपक्ष के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन 1934 में जब इस पार्टी ने फासीवाद के आगे घुटने टेक दिए तो वे कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मास्को-रेडियो में काम। युद्ध के बाद ऑस्ट्रिया में जो नई सरकार बनी, उसमें वे कुछ समय तक शिक्षा मंत्री रहे। तदुपरान्त एक नए समाचार-पत्र की स्थापना करके वर्षों तक उसके प्रधान सम्पादक रहे। 1959 के बाद वे पूरी तरह साहित्य के लिए समर्पित हो गए। चेकोस्लोवाकिया में सेना भेजने के लिए सोवियत संघ का विरोध करने पर 1968 में कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासन।

अंर्स्ट फ़िशर ने सर्जनात्मक लेखन के क्षेत्र में भी काफ़ी काम किया। पहला कविता-संग्रह 1920 में प्रकाशित। अनेक नाटकों की रचना के साथ-साथ उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी। परन्तु उनको मान्यता मिली साहित्य-चिन्तक और कला-मर्मज्ञ के रूप में। ‘कला की ज़रूरत’, ‘समय और साहित्य’, ‘कला और सहअस्तित्व’, ‘कला : विचारधारा के विरुद्ध’ आदि कई प्रसिद्ध और विवादास्पद पुस्तकें उन्होंने लिखी हैं।

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