Kaga Sab Tan Khaiyo

Author: Gurbaksh Singh
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Kaga Sab Tan Khaiyo
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सुविख्यात साहित्यकार गुरबख़्श सिंह पंजाबी भाषा-साहित्य में प्रगतिशील चेतना के जनक माने जाते हैं। आधुनिक पंजाबी साहित्य को उन्होंने कथ्य, भाषा और शिल्प के विभिन्न स्तरों पर प्रभावित किया है और उनके अनेक मौलिक विचार-सूत्र पंजाबी जन-जीवन में मुहावरों की तरह ग्राह्य हो गए हैं।

‘कागा सब तन खाइयो’ उनके द्वारा पुनर्रचित कुछ अमर प्रेम-कथाओं का संग्रह है। हीर-राँझा, सोहनी-महिवाल, शीरी-फ़रहाद, लैला-मजनूँ, सस्सी-पुन्नू और मिर्ज़ा-साहिबाँ जैसे प्रेमी युगल सदियों से भारतीय, ख़ासकर पंजाबी जनमानस को आन्दोलित करते हुए प्रेम के सांस्कृतिक प्रतीकों में बदल गए हैं। इनके साथ प्रेम की वह रागात्मक ऊँचाई जुड़ी हुई है, जिसे न तो सामाजिक निषेध और न दुनियावी रस्मो-रिवाज छू पाते हैं, हालाँकि वे उन्हें सह नहीं पाते। लेखक ने प्रेम-हृदयों की इस शाश्वत त्रासदी को जिस आत्मीयता और कोमलता से उकेरा है, वह सिर्फ़ अनुभव का ही विषय है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 1974
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 122p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20.5 X 13.5 X 1.5
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Author: Gurbaksh Singh

गुरबक्श सिंह

गुरबख्श सिंह (1895-1977) एक भारतीय उपन्यासकार और लघु कथाकार थे, जिनके पास पंजाबी में पचास से अधिक पुस्तकें हैं । उन्हें आधुनिक पंजाबी गद्य का जनक भी माना जाता है और 1971 में साहित्य अकादमी फैलोशिप , नई दिल्ली प्राप्त की 

थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज (वर्तमान IIT रुड़की ) से इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ , उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय , एन आर्बर में सिविल इंजीनियरिंग का अध्ययन भी किया । 

 अपनी दृष्टि और जीवन के दर्शन को दूसरों के साथ साझा करने के लिए उन्होंने मासिक पत्रिका प्रीत लारी की शुरुआत की1933 में। यह पत्रिका इतनी लोकप्रिय हुई कि गुरबख्श सिंह को गुरबख्श सिंह प्रीत लारी के नाम से जाना जाने लगा, हालाँकि उन्होंने खुद इस प्रत्यय को एक लेखक के रूप में कभी इस्तेमाल नहीं किया।गुरबख्श सिंह के परिवार के सदस्यों ने उनके प्रयासों का समर्थन किया और अगली पीढ़ी ने उनके जीवनकाल में और उसके बाद भी काम जारी रखा। चार भाषाओं में छपी इस पत्रिका ने सत्तर के दशक के अंत में पाकिस्तान में भी पीढ़ियों को प्रभावित किया और थाईलैंड जैसे कई देशों में पहुंच गई।

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