Jindagi Ke Liye Hi

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Jindagi Ke Liye Hi

कविता मौलिक रूप से अनुभव का शाब्दिक विस्तार है। जीवन के तमाम अनुभव जब कल्पना और विचार का साहचर्य प्राप्त करते हैं तब अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। रिपुसूदन श्रीवास्तव का कविता-संग्रह ‘ज़िन्दगी के लिए ही’ एक लम्बे जीवनानुभव को विभिन्न छवियों में व्यक्त करता है।

आज अनेक कारणों से मनुष्य और समाज तथा मनुष्य और प्रकृति के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। व्यक्ति अपनी जड़ों से दूर होकर एक बनावटी ज़िन्दगी में बन्दी-सा हो गया है। एक उचाटी शाश्वत भाव-सी बन गई है। स्मृतियाँ हैं कि बार-बार वर्तमान पर दस्तक देती हैं। वे क्षण जो बरसों पहले समय की सदी में प्रवाहित हो गए, जाने कैसे आकुलता के जल में उभर आते हैं...इस संग्रह की कविताएँ ऐसे बहुत सारे तथ्यों को नेपथ्य में महसूस करते हुए रची गई हैं। इनकी सहजता-सरलता ही इनका अलंकरण है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 71p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Author: Ripusudan Shrivastava

रिपुसूदन श्रीवास्तव

शिक्षा : एम.ए. (दर्शन), पीएच.डी., डी.लिट्.।

लगभग 42 वर्षों तक, बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर में अध्यापन।

प्रमुख कृतियाँ : दर्शनशास्त्र में अनेक पुस्तकें (हिन्दी और अंग्रेज़ी), भोजपुरी एवं हिन्दी साहित्य— ‘उषाकिरण’ (गीत-संग्रह), ‘एक और विकल्प’ (कविता-संग्रह), ‘आग भइल जिनगी’ (भोजपुरी कविता-संग्रह), ‘आज का भोजपुरी साहित्य’ (आलोचना), ‘आगे-आगे’ (सम्पादन, भोजपुरी कविताएँ), ‘हीरा-मोती’ (सम्पादन, भोजपुरी कविताएँ)।

विदेश यात्रा : सोफ़िया विश्वविद्यालय (बुल्गारिया) में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर (1989); कोरिया में विश्व दर्शन, कांग्रेस के राउंड टेबल कॉन्फ़्रेंस के वक्ता; जेनेवा (स्विट्जरलैंड), भाषा-दर्शन पर व्याख्यान; सेमिनार—लन्दन, वियेना, पोलैंड, रोम, फ़्रैंकफर्ट (जर्मनी), फ़्रांस, बैंकॉक, सिंगापुर।

बीएनएमयू, मधेपुरा के पूर्व कुलपति रहे रिपुसूदन जी पिछले दिनों ‘बिहार गुरु सम्मान’ से नवाजे गए।

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