कविता संवेदना और विचार के सहमेल से यथार्थ को उसकी समग्र सम्भावना के साथ व्यक्त करती है। जगन्नाथ प्रसाद दास की कविताओं को पढ़ते हुए निरन्तर अनुभव होता है कि कविता समकालीन यथार्थ के साथ परम्परा के संघर्ष को भी प्रकट करती है। ‘गुजरात के बाद’ की कविताएँ गहन आत्मानुभूति से उपजी हैं। परिवेश का प्रभाव तो है ही, कवि ने स्मृतियों को टटोलते हुए अर्थ की पूँजी सहेजी है।

इन कविताओं में उम्मीद का उजाला है। यह उजाला विषाद के क्षणों में भरोसा दिलाता है। कवि ने हमारे समय के संकटों को कई जगह संकेतित किया है। ‘अरण्य’ की पंक्तियाँ हैं : “वनस्पति की सघनता को भेदकर/लकड़हारे की पदचाप सुनाई पड़ती है/सहज कलरव का अविरल छन्द/हठात् थम जाता है/इतिहास की अन्तिम कथा-सा।”

जगन्नाथ प्रसाद दास की इन मूलत: ओड़िया कविताओं का अनुवाद करते समय राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कविता की बहुअर्थी प्रकृति का ध्यान रखा है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2021, Ed. 2nd
Pages 80p
Translator Rajendra Prashad Mishra
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Jagannath Prasad Das

Author: Jagannath Prasad Das

जगन्नाथ प्रसाद दास

जन्म : 26 अप्रैल, 1936

ओड़िया के बहुचर्चित रचनाकार जगन्नाथ प्रसाद दास हिन्दी पाठकों के बीच भी सुपरिचित हैं। वे मूलत: कवि हैं। कला-इतिहास में पीएच.डी. प्राप्त की है। ओड़िया में कई काव्य-संग्रह प्रकाशित। नाटक, कहानी और उपन्यास विधाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान। कला और फ़िल्मों में गहरी अभिरुचि।

हिन्दी में दस से अधिक पुस्तकों का अनुवाद चर्चित।

ओड़िया काव्य-संग्रह ‘आह्निक’ पर वर्ष 1991 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ एवं ‘परिक्रमा’ काव्य-संग्रह पर वर्ष 2006 का ‘सरस्वती सम्मान’ (के.के. बिड़ला फाउंडेशन)। राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह तथा अन्तरराष्ट्रीय बाल फ़िल्म समारोह के जूरी मेम्बर रह चुके हैं।

भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य-सृजन।

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