प्रख्यात विद्वान प्रोफ़ेसर वारिस किरमानी की आत्मकथा ‘घूमती नदी’ एक दस्तावेज़ी किताब है। किताब के पहले अध्याय को ‘ख़ुश्बू-ए-पैरहन’ का शीर्षक दिया गया है। यह नहीं मालूम कि प्रो. किरमानी ने ‘गोमती नदी’ का नाम ‘घूमती नदी’ कहाँ से लिया है। हमारे पुराने हिन्दुस्तानी साहित्य में इस नदी को गोमती नदी ही लिखा गया है। किरमानी साहब ने गोमती के किनारे हरे-भरे मैदानों, खेतों और पुराने क़स्बों की आलीशान मस्जिदों और मन्दिरों का ज़िक्र बड़े ख़ूबसूरत अन्दाज़ में किया है, और फिर उस इलाक़े के मशहूर क़स्बे देवा शरीफ़ में अपनी पैदाइश सन् 1925 में लिखी है। इसी के साथ अवध की रंगारंग तह्ज़ीब, मेले-ठेले, त्योहारों और उत्सवों का दिलचस्प उल्लेख किया गया है। अवध का रहन-सहन, साहित्य, संस्कृति, भाषा, आपसी मेलजोल, भाईचारा, आपसी एकता और अखंडता की जीती-जागती तस्वीरें इस किताब में विशिष्ट प्रकार से मौजूद हैं। अवधी ज़बान, हिन्दुस्तानी मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं की ऐसी झलकियाँ पेश की गई हैं कि पाठक उन अनुभूतियों में खो जाता है और गुज़री हुई ज़िन्दगी की प्रतिध्वनि साफ़ सुनाई देती है।

किरमानी जी के माता-पिता की मृत्यु के बाद मजबूरियों और अभावों का वर्णन भी बहुत मार्मिक है। किताब में जगह-जगह ऐतिहासिक घटनाएँ दुहराई गई हैं, जिससे उनके ऐतिहासिक ज्ञान का पता चलता है। जैसा कि उन्होंने देहली के सुल्तान इल्तुतमिश के बचपन का वर्णन एक फ़ारसी किताब से उद्धृत किया है। इसी तरह औरंगज़ेब के समय की भी एक घटना उल्लिखित की है, जिससे शहंशाह के बारे में ग़लतफ़हमी दूर होती है। इसी के साथ वारिस साहब ने अपने पूर्वजों के बारे में एक दिलचस्प घटना लिखी है जिसके स्रोत का उल्लेख किताब में नहीं है। किताब में वारिस साहब के बचपन, उनके माता-पिता और गुरुजनों की आदतों, तौर-तरीक़ों, लिबास और व्यावहारिक रंग-ढंग का उल्लेख सामाजिक इतिहास का हिस्सा है, जिसे दस्तावेज़ी हैसियत हासिल है।

किरमानी साहब की आत्मकथा जोश मलीहाबादी की ‘यादों की बारात’ से कहीं ज़ियादा साहित्यिक और दिलचस्प है, जिसे पूरी पढ़े बग़ैर रखने को जी नहीं चाहता।

—पुस्तक की भूमिका से

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 259p
Translator Deepak Ruhani
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Varis Kirmani

वारिस किरमानी

प्रोफ़ेसर वारिस किरमानी का जन्म सन् 1925 में देवा शरीफ़, बाराबंकी (यू.पी.) में हुआ। वह ज़मींदारी के ख़ात्मे तक अपने वतन में खेती-किसानी और ज़मींदारी का काम करते रहे। इसके बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में सन् 1963 से 1990 तक फ़ारसी डिपार्टमेंट में मुलाज़िमत की और बहैसियत प्रोफ़ेसर और चेयरमैन, फ़ारसी विभाग से रिटायर हुए।

प्रोफ़ेसर किरमानी उर्दू ज़ुबान के नामवर लेखक, शायर, अदीब और नक़्क़ाद हैं। वह उन चन्द गिने-चुने उर्दू के लेखकों में हैं जिन्होंने उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेज़ी, तीनों भाषाओं में किताबें और मज़मून लिखे हैं। उन्होंने रूस, अमेरिका, ईरान, अरब और सेन्ट्रल एशिया के अदबी जलसों, सेमिनारों आदि में शिरकत की तथा अमेरिका की ड्यूक यूनि0वर्सिटी, हारवर्ड यूनिवर्सिटी एवं शिकागो यूनिवर्सिटी में एक्सटेंशन लेक्चर दिए। उनकी अदबी ख़िदमात के लिए उनको भारत का ‘राष्ट्रपति पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित दर्जन-भर पुरस्कार प्रदान किए गए। भारत के अलावा उन्हें ईरान की हुकूमत ने भी ‘सादी अवार्ड’ से सम्मानित किया। उनकी बहुचर्चित पुस्तक ‘घूमती नदी’ (आत्मकथा) को उर्दू ज़ुबान की बेहतरीन आत्मकथाओं में शुमार किया जाता है। उनके कई शेरी मजमूए (काव्य-संग्रह) और नसरी किताबें (गद्य-पुस्तकें) छप चुकी हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘ना रसीदा’, ‘शाखे मर्जा’, ‘दरे दिलकुशा’ (काव्य); ‘अफकारो ईशा’, ‘उर्दू शायरी के नीम वा दरीच’, ‘ग़ालिब की फ़ारसी शायरी’ (आलोचना); ‘घूमती नदी’ (आत्मकथा) तथा अंग्रेज़ी में—‘Evalution of Ghalib’s Persian Poetry’, ‘Tradition and Rationalism in Ghalib’, ‘Dreams forgotten’ (Indian Contribution to Persian Poetry).

निधन : 29 अक्टूबर, 2012

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