Varis Kirmani
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वारिस किरमानी
प्रोफ़ेसर वारिस किरमानी का जन्म सन् 1925 में देवा शरीफ़, बाराबंकी (यू.पी.) में हुआ। वह ज़मींदारी के ख़ात्मे तक अपने वतन में खेती-किसानी और ज़मींदारी का काम करते रहे। इसके बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में सन् 1963 से 1990 तक फ़ारसी डिपार्टमेंट में मुलाज़िमत की और बहैसियत प्रोफ़ेसर और चेयरमैन, फ़ारसी विभाग से रिटायर हुए।
प्रोफ़ेसर किरमानी उर्दू ज़ुबान के नामवर लेखक, शायर, अदीब और नक़्क़ाद हैं। वह उन चन्द गिने-चुने उर्दू के लेखकों में हैं जिन्होंने उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेज़ी, तीनों भाषाओं में किताबें और मज़मून लिखे हैं। उन्होंने रूस, अमेरिका, ईरान, अरब और सेन्ट्रल एशिया के अदबी जलसों, सेमिनारों आदि में शिरकत की तथा अमेरिका की ड्यूक यूनि0वर्सिटी, हारवर्ड यूनिवर्सिटी एवं शिकागो यूनिवर्सिटी में एक्सटेंशन लेक्चर दिए। उनकी अदबी ख़िदमात के लिए उनको भारत का ‘राष्ट्रपति पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित दर्जन-भर पुरस्कार प्रदान किए गए। भारत के अलावा उन्हें ईरान की हुकूमत ने भी ‘सादी अवार्ड’ से सम्मानित किया। उनकी बहुचर्चित पुस्तक ‘घूमती नदी’ (आत्मकथा) को उर्दू ज़ुबान की बेहतरीन आत्मकथाओं में शुमार किया जाता है। उनके कई शेरी मजमूए (काव्य-संग्रह) और नसरी किताबें (गद्य-पुस्तकें) छप चुकी हैं।
प्रमुख कृतियाँ : ‘ना रसीदा’, ‘शाखे मर्जा’, ‘दरे दिलकुशा’ (काव्य); ‘अफकारो ईशा’, ‘उर्दू शायरी के नीम वा दरीच’, ‘ग़ालिब की फ़ारसी शायरी’ (आलोचना); ‘घूमती नदी’ (आत्मकथा) तथा अंग्रेज़ी में—‘Evalution of Ghalib’s Persian Poetry’, ‘Tradition and Rationalism in Ghalib’, ‘Dreams forgotten’ (Indian Contribution to Persian Poetry).
निधन : 29 अक्टूबर, 2012