Ek Sadhvi Ki Satta Katha

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Ek Sadhvi Ki Satta Katha

उदयपुरम कहीं दूर एक उजाड़ गाँव है। गाँव के बाहर टीलों के बीच प्रज्ञादेवी का मन्दिर। नवरात्रि में यहाँ मेला लगता है। यहाँ आनेवाला हर श्रद्धालु प्रज्ञादेवी को अपनी कुलदेवी मानता है, जो आश्चर्यजनक है।

शताब्दियों पूर्व यह स्थान राजनीति, शिक्षा, व्यापार और संस्कृति का केन्द्र हुआ करता था। यही महानगर एक ऐतिहासिक सत्ता परिवर्तन का भी साक्षी रहा। जनशक्ति ने एक शासन व्यवस्था को सत्ता के शिखरों से नीचे ला खड़ा किया और यह सब किसी राजनीतिज्ञ के नहीं, एक संन्यासिन के नेतृत्व में हुआ था। जनता से मिली शक्ति से उसने सत्ता-परिवर्तन तो कर दिखाया, लेकिन सत्ता के कुटिल तंत्र को वह नहीं समझ सकी। उसके संगी-साथी सत्ता मिलते ही विलास में डूब गए और उसके विरुद्ध खड़े हो गए।

कहते हैं कि षड्यंत्रपूर्वक संन्यासि‍न को राजधानी से निष्कासित कर दिया गया। समाजशास्त्रियों का मत है कि वही संन्यासिन अब विभिन्न जातियों और समुदायों की कुलदेवी के रूप में पूजित है। यह उसी साध्वी प्रज्ञादेवी की कथा है, जो एक रूपक का सहारा लेकर आज की दिशाभ्रष्ट राजनीति का एक विस्तृत चित्र उपस्थित करती है।

जनसाधारण को कभी मालूम नहीं होता कि उनसे शक्ति और धन प्राप्त कर उनके प्रतिनिधि राजधर्म के अपने सुरक्षित कक्षों में क्या करते हैं। रोज़-रोज़ पक्ष-परिवर्तन और नित नूतन सन्धियाँ किसके लिए होती हैं। साध्वी के संघर्ष के साथ-साथ यह कथा उनकी भी है, जिन्हें आज हम अलग वेशभूषा में देखते हैं, लेकिन उनका चरित्र अभी भी वही है जैसा इस बृहत् उपन्यास के पृष्ठों पर अंकित है—धूल-धूसरित सड़कों पर रेंग रहे लोगों पर झपट पड़ने को तैयार गिद्धों का और चीलों का।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 368p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 2.5
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Vijay Manohar Tiwari

Author: Vijay Manohar Tiwari

विजय मनोहर तिवारी

पेशे से पत्रकार। मध्य प्रदेश के सागर ज़िले के मंडीबामौरा में जन्म। एसएसएल जैन पीजी कॉलेज, विदिशा से गणित में एम.एससी. प्रथम श्रेणी प्रथम (1991)। एक वर्ष कॉलेज के ही गणित विभाग में अध्यापन। एक ही वर्ष में अध्यापन से मुक्ति और पत्रकारिता में प्रवेश। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से 1993 में पत्रकारिता स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्रथम। दैनिक ‘नई दुनिया’ भोपाल से पत्रकारिता की शुरुआत। तत्पश्चात् ‘नई दुनिया’, इन्दौर में नौ वर्षों तक रिपोर्टिंग। 2003 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रवेश और ढाई साल तक ‘सहारा समय’ न्यूज़ चैनल में रिपोर्टिंग। सम्प्रति भारत के सबसे तेज़ बढ़ते बहुप्रसारित अग्रणी अख़बार ‘दैनिक भास्कर’ में विशेष संवाददाता।

विशेष : वर्ष 2004 के मानसून में मध्य प्रदेश की इंदिरा सागर बाँध परियोजना में डूबे हरसूद समेत ढाई सौ गाँवों के विस्थापन पर ढाई महीने तक टीवी पर लाइव कवरेज। इस कवरेज पर केन्द्रित पुस्तक ‘हरसूद 30 जून’ को वर्ष 2007 में ‘अखिल भारतीय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र’ पुरस्कार। एनएसडी, दिल्ली द्वारा इस किताब पर एक नाटक की रचना। रोज़मर्रा की रिपोर्टिंग के अलावा वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात में स्वाध्याय परिवार के आत्मनिर्भर गाँवों में भ्रमण व रिपोर्टिंग। झाबुआ के चर्चित हिन्दू संगम और धार के विवादास्पद भोजशाला आन्दोलन व मध्य प्रदेश में हर्बल खेती पर कवरेज।

पुरस्कार : वर्ष 1997 से 2007 तक प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में श्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए अनेक अवार्ड।

प्रकाशन व लेखन : दो किताबें ‘हरसूद 30 जून’ और ‘प्रिय पाकिस्तान’ प्रकाशित। ‘एक साध्वी की सत्ता कथा’ के अलावा मीडिया पर केन्द्रित उपन्यास ‘अन्तःकथा’ और संस्मरण-संकलन ‘अपनी आयतें’ प्रकाशित। भारत के सन्दर्भ में आतंकवाद पर केन्द्रित एक अन्य उपन्यास का लेखन।

सम्‍प्रति : वर्तमान में मध्‍य प्रदेश के सूचना आयुक्त।

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