Dukh Naye Kapde Badal Kar

Author: Shariq Kaifi
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Dukh Naye Kapde Badal Kar
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शारिक़ कैफ़ी की शाइ’री में, आदमी का इस दुनिया में होना, अपने जिस्म-ओ-जान, चेतना, जज़्बों और महसूस करने की तमामतर ताक़त के साथ, एक घर, एक ख़ानदान, एक मुहल्ले, उसके गली-कूचों और एक सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल में होना, और दिल-ओ-दिमाग़ के छोटे-छोटे वाक़िआ’त से बनते-बिगड़ते वाक़िआ’त में, और उनके माध्यम से, होना है। ये वाक़िआ’ती तख़य्युल (घटना आधारित कल्पना) शारिक़ कैफ़ी की बहुत बड़ी ताक़त और पहचान है, और इसमें उनका कोई सानी नहीं। इसकी बदौलत उर्दू की इ’श्क़िया शाइ’री बिलकुल नई, अनोखी, ज़हनी, जज़्बाती और नफ़्सियाती (मनोवैज्ञानिक) बारीकियों से परिचित हुई है, जो उर्दू शाइ’री को उनकी बहुत ख़ास देन है।

शारिक़ का सफ़र अब जिस मर्हले (चरण) में है, वहाँ तक बेरहम हक़ीक़त-पसन्दी (यथार्थ-बोध) की लय तेज़तर होती जा रही है। ये भाव उनकी इ’श्क़ियात शाइ’री में भी जारी है, और ज़िन्दगी और दुनिया के उनके अनुभवों में भी।

ज़िन्दगी, दुनिया और कायनात के बारे में शारिक़ कैफ़ी के तज्रबात में अब बहुत फैलाव और व्यापकता आ गई है। यहाँ हर चीज़, हर शक्ल और हरकत को हर ख़याल और धारणा का उलट-पुलट करके देखा जा रहा है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 137p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan - Rekhta Books
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Shariq Kaifi

Author: Shariq Kaifi

शारिक़ कैफ़ी

शारिक़ कैफ़ी (सय्यद शारिक़ हुसैन) बरेली (उत्तर प्रदेश) में 1961 में पैदा हुए। वहीं बी.एस-सी. और एम.ए. (उर्दू) तक शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता कैफ़ी विज्दानी (सय्यद रिफ़अत हुसैन) मशहूर शाइ'र थे, इस तरह शाइ’री उन्हें विरासत में हासिल हुई। उनकी ग़ज़लों का पहला मजमूआ ‘आम सा रद्द-ए-अमल’ 1989 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद, 2008 में दूसरा ग़ज़ल-संग्रह ‘यहाँ तक रौशनी आती कहाँ थी’ और 2010 में ‘नज़्मों का मजमूआ ‘अपने तमाशे का टिकट’ प्रकाशित हुआ। 2017 में ग़ज़ल-नज़्म की एक किताब ‘खिड़की तो मैंने खोल ही ली’ देवनागरी में प्रकाशित हुई। 2019 में ‘देखो क्या क्या भूल गए हम’ के नाम से ग़ज़लों और नज़्मों का एक संग्रह उर्दू में सामने आया। ‘दु:ख नए कपड़े बदलकर’ नवीनतम कृति है।

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