Devnagari Lipi Aur Hindi Sangharshon ki Etihasik Yatra

Literary Criticism
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Devnagari Lipi Aur Hindi Sangharshon ki Etihasik Yatra-1
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संसार में सर्वाधिक वैज्ञानिक, सरल, सहज और सुगम होने के बावजूद देवनागरी लिपि सदियों से अपने अस्तित्व-संघर्ष में लीन रही है। भारत में मुग़ल और ब्रिटिश शासन के सुदीर्घ कालखंडों में विभिन्न दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक कारणों से उसे न्यायालय, शासन और प्रशासन में समुचित स्थान से वंचित होना पड़ा। राष्ट्रीय एकता के लिए यह लिपि का गौरवपूर्ण स्थान ग्रहण करने की एकमात्र निर्विवाद अधिकारिणी है, जिसकी सार्वजनिक माँग 1882 से ही अक्सर उठती रही है। इस माँग की पूर्ति अद्यावधि नहीं हो सकी। प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वान लेखक डॉ. रामनिरंजन परिमलेन्दु ने भारत के मध्य काल से ब्रिटिश काल तक देवनागरी लिपि के निरन्तर संघर्षों का खोजपूर्ण मौलिक विवेचन सर्वथा अज्ञात, अल्पज्ञात, विलुप्तप्राय प्राथमिक ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर किया है। यह विवेचन बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक राष्ट्रलिपि की अवधारणा को भी समाहित कर लेता है। यद्यपि हिन्दी भारत की राजभाषा है तथापि इसे अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए सर्वाधिक संघर्ष करने पड़े। संघर्षों की यह लम्बी यात्रा आज भी जारी है।
भारत की खंडित आज़ादी के आरम्भिक पचास वर्षों में हिन्दी भाषा की दशा और दिशा का अति प्रामाणिक विश्लेषण, विवेचन और अनुशीलन भी इसकी प्रारम्भिक पूर्व पीठिका के साथ यहाँ किया गया है। यह ग्रन्थ देवनागरी लिपि और हिन्दी के संघर्षों की ऐतिहासिक यात्रा का दस्तावेज़ है—संग्रहणीय, पठनीय और मननीय भी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 320p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 2
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Editorial Review

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Author: Ram niranjan Parimalendu

रामनिरंजन परिमलेन्दु

आपका जन्म 24 अगस्त, 1935 को हुआ।

आप बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) में हिन्‍दी के प्रोफ़ेसर रहे।

‘भारतेन्दु काल के भूले-बिसरे कवि और उनका काव्य’, ‘भारतेन्दु काल का अल्पज्ञात हिन्दी गद्य साहित्य’, ‘देवनागरी लिपि और हिन्‍दी : संघर्षों की ऐतिहासिक यात्रा’ आदि अनेक आपकी महत्‍त्‍वपूर्ण पुस्‍तकें हैं।

हिन्दी साहित्य का इतिहास विशेषतया उन्नीसवीं शताब्दी का सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य, हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास, देवनागरी लिपि आन्दोलन का इतिहास, राष्ट्रलिपि, उन्नीसवीं शताब्दी के हिन्दी गद्य की विभिन्न विधाएँ, हिन्दी के आरम्भिक उपन्यास, भारत में सार्वजनीन लिपि की अवधारणा का इतिहास और उसमें हिन्दीतर भाषियों का अवदान, नवलेखकों का मार्गदर्शन आदि विषयों में आपको विशेषज्ञता हासिल थी। आप हिन्दी साहित्य के इतिहास की टूटी हुई कड़ियों को जोड़ने हेतु सदैव सक्रिय और उसकी भ्रान्तियों के निवारणार्थ निष्ठापूर्वक समर्पित रहे।

निधन : 29 सितम्‍बर, 2020

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