Chitt Basain Mahaveer : Jivan Aur Darshan

Author: Prem Suman Jain
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Chitt Basain Mahaveer : Jivan Aur Darshan

विश्‍व के साधक चिन्‍तकों में जैन दार्शनिक एवं तीर्थंकर कई दृष्टियों से स्‍मरण किए जाते हैं। उनका चिन्‍तन धर्म, जाति, देशकाल को गहरे प्रभावित करता है। उन्‍होंने प्राणीमात्र के कल्‍याण एवं विकास के सूत्र अपने उद्बोधनों में प्रदान किए हैं। भगवान महावीर का सन्‍देश है कि सुख, शान्ति, तनावरहित जीवन अपरिग्रह, सन्‍तोष, संयम से ही आ सकता है। तीर्थंकर महावीर ने अपने जीवन में व्‍यक्तिगत स्‍वामित्‍व के विसर्जन का प्रयोग करके बताया है। उन्‍होंने राज्‍यपद को त्‍यागा और पदार्थों के ढेर से अलग जा खड़े हुए, तब वे समता और शान्ति के स्‍वामी बने।

भगवान महावीर ने व्‍यक्ति के पूर्ण विकास के लिए एक ओर जहाँ आत्‍म-विकास का पथ प्रशस्‍त किया है, वहीं दूसरी ओर लोक-कल्‍याण के लिए सामाजिक मूल्‍यों का भी सृजन किया है। अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्‍त—ये तीनों मूल्‍य महावीर के सामाजिक अनुसन्‍धान के परिणाम हैं। तीर्थंकर महावीर के चिन्‍तन ने व्‍यक्ति को पुरुषार्थी और स्‍वावलम्‍बी बनने की शिक्षा दी है। उन्‍होंने मानव को सहिष्‍णु, निराग्रही होने का भी सन्‍देश दिया है। विचारों की उदारता से ही हम सत्‍य की तह तक पहुँच सकते हैं। तीर्थंकर महावीर का सारा जीवन आत्‍म-साधना के पश्‍चात् सामाजिक और नैतिक मूल्‍यों के निर्माण में ही व्‍यतीत हुआ। इसी कारण तीर्थंकर महावीर मानव जाति के गौरव के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

‘चित्‍त बसें महावीर’ पुस्‍तक में प्रो. प्रेम सुमन जैन ने तीर्थंकर महावीर के प्रेरणादायक जीवन और दर्शन को एक रोचक शैली में प्रस्‍तुत किया है। एक महत्‍त्‍वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Prem Suman Jain

Author: Prem Suman Jain

प्रेम सुमन जैन

जन्म : 1 अगस्त, 1942; सिहुंड़ी, जबलपुर, मध्य प्रदेश।

शिक्षा : कटनी, वाराणसी, वैशाली एवं बोधगया में संस्कृत, पालि, प्राकृत, जैन धर्म तथा भारतीय संस्कृति का विशेष अध्ययन। कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन विषय पर पीएच.डी.।

सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग के प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष तथा अधिष्ठाता आदि पदों से सेवानिवृत्त। 

लेखन-सम्‍पादन : 50 से ज्‍़यादा पुस्तकों का लेखन-सम्पादन एवं अनेक शोधपत्र प्रकाशित। प्राकृत-अध्ययन प्रसार संस्थान, उदयपुर के मानद निदेशक एवं त्रैमासिक शोध-पत्रिका प्राकृतविद्या के संस्थापक व सम्पादक। प्राकृत-अपभ्रंश की पांडुलिपियों के सम्पादन-कार्य में प्रमुख योगदान।

विशेष : देश-विदेश के विभिन्न सम्मेलनों में शोधपत्र-वाचन। 1984 में अमेरिका एवं 1990 में यूरोप-यात्रा के दौरान विश्वधर्म सम्मेलनों में जैन-दर्शन का प्रतिनिधित्व एवं जैनविद्या पर विभिन्न व्याख्यान। अ.भा. प्राच्य विद्या सम्मेलन के चेन्नई अधिवेशन में प्राकृत एवं जैनधर्म खंड के अध्यक्ष। यू.जी.सी. द्वारा सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में स्थापित बौध अध्ययन एवं अहिंसा केन्द्र के मानद निदेशक के उपरान्त एमेरिटस प्रोफ़ेसर फ़ेलो के रूप में कार्य।

सम्‍मान : ‘चम्पालाल सांड साहित्य पुरस्कार’, ‘प्राकृत ज्ञानभारती अवार्ड’, ‘आचार्य हस्ती स्मृति सम्मान आदि से सम्मानित।

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