Cheen Mein Darshanshastra

Author: G. Ramkrishna
Translator: Indravati
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Cheen Mein Darshanshastra
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‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ ग्रन्थमाला की यह दूसरी पुस्तक है जिसमें विश्व की एक प्राचीनतम दार्शनिक धारा का परिचय प्रस्तुत किया गया है।

चीन में दर्शन की परम्परा यों तो बहुत पुरानी है, लेकिन ईसा-पूर्व की पाँचवीं से तीसरी शताब्दी का काल दार्शनिक चिन्तन की दृष्टि से समृद्धि का काल माना जाता है। कन्फ्यूशियस का चिन्तन इसी काल की देन है। तब से लेकर कुछ शताब्दी पहले तक इस देश में अनेक दार्शनिक मतवाद अस्तित्व में आए। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी मतवादों की पृष्ठभूमि स्पष्ट करने के लिए अनेक सदियों के कालक्रम में चीन के राजवंशों की एक संक्षिप्त रूपरेखा दी गई है। उसके बाद विभिन्न सम्प्रदायों के सिद्धान्तों और उनके सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थों का विवेचन किया गया है। चीन में बौद्ध मत का आगमन एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसके फलस्वरूप चिन्तन के क्षेत्र में कई धाराओं-उपधाराओं का जन्म हुआ। चीनी दर्शन में चूँकि इन धाराओं-उपधाराओं का विशेष महत्त्व है, इसलिए लेखक ने ख़ास तौर पर इनका विश्लेषण और इनके दार्शनिक लक्ष्यों का मूल्यांकन किया है। इसी प्रकार, इन्होंने एक ओर महिमामंडित कन्फ्यूशियस को एक सटीक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में स्थापित किया है तो दूसरी ओर लांछित ताओवाद की एक सुबोध व्याख्या भी दी है। चीनी दर्शन के अनेक सम्प्रदायों का मत रहा है कि दर्शनशास्त्री होने के लिए हर समय तत्त्वमीमांसा के गूढ़ रहस्यों में उलझे रहना आवश्यक नहीं है। इसी प्रकार हमारा भी विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक को पढ़ने और समझने के लिए दर्शन का पंडित होना आवश्यक नहीं है। थोड़े-से पृष्ठों में चीनी दर्शन का एक व्यापक, फिर भी सुबोध, परिचय इस पुस्तक की विशेषता है, और आशा की जा सकती है कि इससे विशेषतः भारतीय और चीनी दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन की प्रेरणा प्राप्त होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1992
Edition Year 2022, Ed. 3rd
Pages 108p
Translator Indravati
Editor Deviprasad Chattopadhyay
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Author: G. Ramkrishna

जी. रामकृष्ण

नेशनल कॉलेज, बंगलोर, में अंग्रेज़ी के अध्यापक डॉ. जी. रामकृष्ण वैदिक साहित्य और भारतीय दर्शन के गम्भीर अध्येता रहे हैं। मैसूर विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. (1959) और पी-एच.डी. (1965) करने के बाद उन्होंने पूना विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. (1965) किया, और फिर ग्रेट ब्रिटेन के वेल्स विश्वविद्यालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान से 1968 में इंगलिश स्टडीज में एक और एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। साहित्य, दर्शन, शिक्षा आदि में विविध विषयों पर बहुत-से शोधपत्र और लेख लिखने के अतिरिक्त उन्होंने अनेक ग्रन्थों का लेखन और सम्पादन भी किया है। दर्शन और सम्बद्ध विषयों पर कन्नड़ भाषा में उनके लेख-संग्रह मुन्नोता को 1980 में कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनकी कुछ अन्य कृतियाँ ‘दि लिविंग मार्क्स’, ‘भगतसिंह’ आदि हैं। वे ‘ऐन इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ साउथ इंडियन कल्चर’ के सहप्रणेता और सम्पादक रहे हैं। उन्होंने प्रो. एस. रामचन्द्र राव के सम्मान में प्रकाशित ग्रन्थ ‘स्टडीज इन इंडियन कल्चर’ का सम्पादन भी किया है। शोध-कार्य के दिनों से ही वे चीनी दर्शन के एक गम्भीर छात्र रहे हैं।

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