धारावी की पृष्ठभूमि में मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य को केंद्रीय विषयवस्तु बनाकर लिखा गया नाटक ‘बागड़बिल्ला’ व्यक्ति द्वारा अपनी भावनात्मक जरूरतों के चलते बनाए गए समाज के मकड़जाल की कहानी है। इसके सभी किरदार अपने-अपने सामाजिक-भावनात्मक सफर के अलग-अलग पड़ाव पर हैं और चलते-चलते ऐसे स्थान पर पहुँच जाते हैं जहाँ उन्हें यह इलहाम होता है कि इस सफर में अन्तत: वे अपनी-अपनी तरह से अकेले हैं। वे एक ऐसे अकेलेपन का शिकार हैं जिसमें कोई भी उनकी मदद नहीं कर सकता, इस अकेलेपन से उन्हें खुद ही निपटना है, चाहे जैसे निपटें–चाहे जीकर, चाहे दम तोड़कर।
कम या ज्यादा, मगर आज हरेक व्यक्ति कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी प्रकार के अकेलेपन की चपेट में है। यह अकेलापन, पहचान के संकट, उत्तेजना, अवसाद और उसे अभिव्यक्त न कर पाने की कसक अथवा ऐसे ही अन्य कारणों से उपजा हो सकता है। कहना न होगा कि उपेक्षा, असुरक्षा और भय का साया लोगों पर इस कदर हावी है कि जरूरत पड़ने पर वे बेझिझक किसी से मदद भी नहीं माँग पाते, न ही मदद करने की स्थिति में होने के बावजूद किसी की मदद कर पाते हैं। ‘बागड़बिल्ला’ इस सचाई को बारीकी से उजागर करता है। ओमकार घाग का यह नाटक बतलाता है कि प्राथमिक रूप से मनुष्य की भावनात्मक जरूरतों के चलते निर्मित परिवार, समुदाय और समाज जैसी संस्थाएँ और विभिन्न व्यवस्थाएँ परिवर्तित परिस्थितियों में चरमरा रही हैं जिन्हें पुन:परिभाषित और पुनराविष्कृत करना आवश्यक है।
—अभिषेक गोस्वामी
बागड़बिल्ला की ब्रिदींग स्पेस इंडिया द्वारा की गई प्रस्तुति के निर्देशक
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2023 |
Edition Year | 2023, Ed. 1st |
Pages | 96p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 13 X 1 |