समकालीन हिन्दी कविता में अपनी विनम्र और सार्थक उपस्थिति दर्ज करती कवयित्री मधु बी. जोशी अपने पहले काव्य-संग्रह ‘अकेली औरतों के घर’ में अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा और प्रखरता के साथ उपस्थित हैं। सरल-सहज भाषा में लिखी ये कविताएँ स्त्रियों के जटिल जीवन-स्थितियों, विडम्बनाओं और उनके जय-पराजय की पड़ताल करती हैं। हालाँकि संग्रह की अधिकांश कविताएँ स्त्रियों पर केन्द्रित हैं लेकिन इनमें आम लोगों की जिन्दगी के भी विभिन्न रंग बिखरे हैं, इन्हें मात्र स्त्रीवादी कविता कहना कवयित्री के काव्य-परिवेश को संकुचित करने जैसा अन्यायपूर्ण कार्य होगा। ये कविताएँ अराजक देह-समय में लहूलुहान स्त्रियों की शोक-गीतिका हैं जो अपनी विरल लय में पाठकों को एक रचनात्मक आस्वाद प्रदान करने के साथ समय, समाज, राजनीति के नए प्रभुओं की विन्द्रूपताओं तथा बाज़ार की जगर-मगर दुनिया के छल-छद्मों से साक्षात्कार कराती हैं। लेकिन यह पराजित अथवा एकाकीपन के बियाबान में भटकती स्त्री की हताशा की कविताएँ नहीं हैं, बल्कि ये एक उम्मीद रचती हैं क्योंकि ‘अभी/हवा में नमी बाक़ी है/धूप हमेशा ही हिंसक नहीं रहती/धरती अब भी बहुत उर्वरा है।’ इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सम्प्रेषणीयता जो सीधे पाठकों के हृदयस्थल को छू लेती है। कम शब्दों में बड़ी बात कह जाना कवयित्री की अपनी विशिष्ट उपलब्धि है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2005 |
Pages | 95p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |