Aadhunik Kavi-Text Book

ISBN: 9788180319181
Edition: 2019, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
₹210.00
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9788180319181
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बीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली का काव्य इतना समृद्ध हो गया है कि उसे संसार के किसी भी सभ्य देश के काव्य की तुलना में रखा जा सकता है। इस युग में विभिन्न साहित्यिक वादों और आन्दोलनों का प्रचार हुआ, इस युग ने हमें प्रथम श्रेणी के अनेक महाकाव्य और खंड-काव्य दिए और इसी युग में एक ओर गीति-काव्य और दूसरी ओर मुक्त छंद का ऐसा प्रसार हुआ, जिसकी समता अतीत के सम्पूर्ण इतिहास में नहीं मिलती। अत: समय की माँग है कि आधुनिक काव्य के भावगत एवं कलागत सौन्‍दर्य का लेखा-जोखा अब लिया जाए।

औद्योगीकरण एवं उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव केवल निम्न वर्ग पर ही नहीं, बल्कि उसकी गिरफ़्त में सम्पूर्ण मानवीय समाज है। धर्म की अमानवीय व्याख्या स्वार्थपरकता, अर्थलोलुपता, विज्ञान के द्वारा विकसित विनाश के विभिन्न साधन आदि के कारण सम्पूर्ण मनुष्यता के लिए ही संकट पैदा हुआ। मनुष्य का बचना बहुत प्राथमिक है। अभी भी मनुष्य जीवन और मृत्यु के अनेक प्रश्नों से टकरा रहा है। परिवर्तन की गति इतनी तेज है कि यह आशंका होने लगती है कि मनुष्य की पहचान करानेवाले लक्षण ही न लुप्त हो जाएँ। अशोक वाजपेयी ऐसे रचनाकार हैं जो मनुष्यता के व्यापक प्रश्नों से टकराते हैं और नई परिस्थितियों में मानवीय सभ्यता को रचना के माध्यम से स्थापित करते हैं।

नयी कविता से जुड़े अनेक कवियों ने अपनी निजी अनुभूति और शिल्प के द्वारा रचनात्मक ऊँचाई हासिल की, उनकी रचनाधर्मिता को काव्यधारा के दायरे में पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता है, बल्कि उनका अलग-अलग विवेचन अपेक्षित है।

इस ग्रन्थ में भारतेन्दु से लेकर अरुण कमल तक ऐसे चौवालीस प्रतिनिधि कवियों के काव्य का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है जिनका साहित्य के इतिहास में विशेष महत्व है और जिन्होंने अपनी साधना से अपने व्यक्तित्व की छाप इस युग पर किसी न किसी रूप में छोड़ी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2019, Ed. 4th
Pages 360p
Price ₹210.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Vishvambhar ‘Manav’

Author: Vishvambhar ‘Manav’

विश्‍वम्‍भर मानव

विश्‍वम्‍भर ‘मानव’ का जन्‍म 2 नवम्‍बर, 1912 को बुलन्‍दशहर ज़‍िले के डिवाई नामक क़स्‍बे में हुआ था। सन् 1938 में उन्‍होंने आगरा विश्‍वविद्यालय से हिन्‍दी से एम.ए. किया और प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम उत्‍तीर्ण हुए।

उनके जीवन का अधिकांश समय अध्‍यापन में व्‍य‍तीत हुआ। पन्‍द्रह वर्ष उन्‍होंने क्‍वींस कॉलेज, काशी; आगरा कॉलेज, आगरा; गोकुलदास गर्ल्‍स कॉलेज, मुरादाबाद तथा इलाहाबाद डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद जैसी प्रसिद्ध संस्‍थाओं में हिन्‍दी प्रवक्‍ता के रूप में कार्य किया। दस वर्ष आकाशवाणी के इलाहाबाद-लखनऊ केन्‍द्रों से सम्‍बद्ध रहे। इसके अतिरिक्‍त हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन, लखनऊ सचिवालय, किताब महल, इलाहाबाद तथा एक हिन्‍दी साप्‍ताहिक में भी विविध रूपों में काम किया।

उनकी लगभग पैंतीस पुस्‍तकें प्रकाशित हैं, जिनमें आलोचना, उपन्‍यास, नाटक, कविता, डायरी, गद्यगीत आदि सम्‍म‍िलित हैं। उनके युग के चार प्रसिद्ध छायावादी कवियों—प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी पर स्‍वतंत्र समीक्षा ग्रन्‍थ लिखनेवाले वे पहले आलोचक थे। उनके ये ग्रन्‍थ समय-समय पर उत्‍तर-दक्षिण के बारह विश्‍वविद्यालयों में विशेष अध्‍ययन के लिए स्‍वीकृत रहे।

1973 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के उपरान्‍त उनका जीवन केवल स्‍वतंत्र लेखन को समर्पित रहा। 1980 में उनका देहावसान हुआ। 

 

 

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