Thaharti Sanson Ke Sirhane Se : Jab Zindagi Mauj Le Rahi Thi

Editor: Prabhat Ranjan
Edition: 2019, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Sarthak (An imprint of Rajkamal Prakashan)
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Thaharti Sanson Ke Sirhane Se : Jab Zindagi Mauj Le Rahi Thi
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अनन्या मुखर्जी के शब्दों में कहें तो ‘जब मुझे पता चला कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है, मैं विश्वास नहीं कर सकी। इस ख़बर ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। लेकिन जल्द ही मैंने अपने आत्मविश्वास को समेटकर अपने को मज़बूत किया। मैं जानती थी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा...!’

लेकिन पहली बार हुआ कि वो भविष्य के अँधेरों से जीत नहीं पाई।

18 नवम्बर, 2018 को अनन्या कैंसर से अपनी लड़ाई हार गईं। लेकिन अनन्या जीवित हैं, दोस्तों-परिवार की उन ख़ूबसूरत यादों में जिन्‍हें वे उनके लिए छोड़ गई हैं। साथ ही, डायरी के उन पन्नों में जो कैंसर की लड़ाई में उनके साथी रहे।

यह किताब कैंसर की अँधेरी लड़ाई में एक रोशनी की तरह है (कमरे की खिड़की पर बैठे गंदे कौवे की तुलना अपने एकदम साफ़, बिना बालों के सर से करना), एक कैंसर के मरीज़ के लिए कौन सा गिफ़्ट उपयोगी है ऐसी सलाह देना (जैसे रसदार मछली भात के साथ कुछ उतनी ही स्वादिष्ट कहानियाँ एक अच्छा उपहार हो सकती हैं), साथ ही एक कैंसर मरीज़ का मन कितनी दूर तक भटकता है (जैसलमेर रोड ट्रिप और गंडोला–एक तरह के पारम्‍परिक नाव–में बैठ इटली के ख़ूबसूरत, पानी में तैरते हुए, शहर वेनिस की सैर)।

‘ठहरती साँसों के सिरहाने से’ किताब उम्मीद है, हिम्मत है। यह किताब सुबह की चमकती, गुनगुनाती धूप की तरह ताज़गी से भरी हुई है जो न केवल कैंसर से लड़ते मरीज़ के लिए बल्कि हम सभी के लिए जो अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड़ते आए हैं, कभी न हार माननेवाली उम्मीद की किरण है।

 

 ‘शरीर के अन्‍दर बीमारी से लड़ना किसी अँधेरी गुफ़ा के भीतर घुसते जाना है, इस विश्वास के साथ कि इसका अन्तिम सिरा रौशनी से भरा होगा। काश, मैं अनन्या से मिलकर उन्हें बता सकता कि उन्होंने कितनी ख़ूबसूरती से कैंसर से लड़ाई की कहानी इस किताब में लिखी है ।’    

—युवराज सिंह

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 104p
Translator Not Selected
Editor Prabhat Ranjan
Publisher Sarthak (An imprint of Rajkamal Prakashan)
Dimensions 19.5 X 13 X 0
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Ananya Mukherjee

Author: Ananya Mukherjee

अनन्या मुखर्जी

अनन्या मुखर्जी ने अपना बचपन नागपुर और दिल्ली में बिताया, जहाँ उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की। उन्होंने सिम्बायोसिस कॉलेज, पुणे से मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की, और वे अपने बैच की टॉपर थीं। पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण करने के लिए वह आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ वोल्लोंगोंग गईं।

अपने सत्रह साल के पेशेवर जीवन में उन्होंने कई जानी-मानी पीआर कम्पनियों और कॉर्पोरेट कम्पनियों के साथ काम किया, जिनमें कॉर्पोरेट वोयस, गुड रिलेशंस, इंजरसोल रैंड और डालमिया भारत ग्रुप शामिल हैं।

2012 में शादी के बाद वे जयपुर चली गईं, जो उनका दूसरा घर बन गया।

2016 में पता चला कि अनन्या को स्तन कैंसर था, जब उनका इलाज चल रहा था तो उन्होंने कैंसर से जुड़े अपने अनुभवों, और इस बारे में कि कैंसर का मुक़ाबला किस तरह किया जाए, के बारे में लिखना शुरू कर दिया, जो इस किताब के रूप में सामने है।

कीमोथेरेपी के पचास से अधिक सत्रों से गुज़रने के बावजूद अनन्या शब्दों से जादू जगा देती थीं। यह किताब उन लोगों के जीवन में उम्मीद की किरण की तरह हो सकती है जिनको कैंसर है और उनके परिजनों तथा देखभाल करने वालों के लिए भी जो मरीज़ के साथ-साथ इस बीमारी को अनुभव कर रहे होते हैं। 18 नवम्बर, 2018 को अनन्या कैंसर से लड़ाई हार गईं।

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