Tatari Veeran

Author: Dino Buzzati
Translator: Ghanshayam Sharma
Edition: 1997, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Tatari Veeran

सन् 1940 में प्रकाशित ‘तातारी वीरान’ दीनो बुत्साती की एक उत्कृष्ट कृति है। इसमें कुशल लेखक ने मँजी शैली के माध्यम से मानव-जीवन में व्याप्त बेतुकेपन (absurdity) को अपनी वैचित्र्यपूर्ण भाव-संवेदनाओं के ताने-बानों से पिरोया है। उपन्यास में व्यक्त दर्शन एक तरह का अस्तित्ववादी चिन्तन है। कथानक की बुनावट की दृष्टि से यह एक अतियथार्थवादी रचना है जिसमें कथा-संयोजन स्वैरकल्पना (fantasy) के माध्यम से होता है। ‘तातारी वीरान’ के पात्र जीवन-भर अपने द्वारा ही निर्मित भ्रमों के क़ैदी बनकर एक आशा में पूरी ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं—जीवन में कुछ बड़ा कर पाने की निर्मूल आशा में! जीवन के हर आयाम में छाया बेतुकापन वस्तुत: एक सम्भावित भय से परिचालित रहता है। मानवीय सम्बन्धों की आधारभूमि एक-दूसरे के बीच की ऐसी ‘जानकारी’ पर निर्मित होती है जो ठोस नहीं अपितु दलदल युक्त है—जिसमें बेतुकेपन की अन्त:सलिला निरन्तर बहती रहती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1997
Edition Year 1997, Ed. 1st
Pages 194p
Translator Ghanshayam Sharma
Editor Ghanshayam Sharma
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Author: Dino Buzzati

दीनो बुत्साती

जन्‍म : 16 अक्‍टूबर, 1906

बीसवीं शताब्दी के इतालवी कथा-साहित्य में बुत्साती का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मूलत: एक सजग पत्रकार के साथ-साथ वह एक अद्वितीय लेखक थे। उन्होंने उपन्यास, कहानी और कविता लिखने के अतिरिक्त चित्रकारी भी की। वे जीवन-भर इटली के प्रमुख समाचार-पत्र ‘सान्ध्य समाचार’ (Corriere della Sera) से जुड़े रहे। उनके कृतित्व में एक ओर अस्तित्ववादी चिन्तन के दर्शन होते हैं तो दूसरी ओर शिल्प के स्तर पर अतियथार्थवादी साहित्य जैसी अतिरंजित संरचनाएँ भी मिलती हैं। वह फ़ैंटेसी के माध्यम से कथा बुनने में सिद्धहस्त हैं। उनकी रचनाओं का यह काल्पनिक रवैया मानव-जीवन के बेतुकेपन को सजीव कर सर्वग्राह्य और सार्वजनीन बना देता है। साहित्य-लेखन, चित्रकारी, पत्रकारिता और पर्वतारोहण के अलावा बुत्साती को पर्यटन का बड़ा शौक़ था। वह सन् 1964 में भारत पधारे और भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए बिना न रहे। कल्पनात्मक साहित्य-धारा में बुत्साती अप्रतिम हैं और शिल्प की दृष्टि से उनकी रचनाएँ बेजोड़।

निधन : 28 जनवरी, 1972

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