Suno Kabir

Author: Soni Pandey
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Suno Kabir
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सुनो कबीर युवा कथाकार सोनी पांडेय का पहला उपन्यास है। इसमें वे आज़मगढ़ के एक गाँव इब्राहिमपुर की कथा कह रही हैं। उपन्यास इस बात का जीवन्त दस्तावेज है कि एक साझी विरासत और सपने साझा करते हुए लोग राजनीतिक साजिशों का शिकार होकर कैसे एक दूसरे को शक की नजर से देखने लगते हैं। असल में इनके साझेपन के बीच एक दरार है जिस पर सवार होकर बाँटने वाली तमाम ताकतें बार-बार इन तक आती हैं। ये दरार है जाति और धर्म की चौहद्दी को बनाए रखते हुए एकता बनाए रखने की कोशिश करना। जाति या धर्म के बाहर घटित हुआ एक प्रेम भी इस कथित एकता को ध्वस्त कर देता है और उस्मान की मुहब्बत भरी दुनिया उजड़ जाती है। लेकिन यहीं से उपन्यास नई उठान लेता है जहाँ उस्मान अपने निजी जीवन में त्रासदी का शिकार होकर भी इस दुनिया में मुहब्बत बचाए रखते हैं।  

सोनी अपनी कहानियों में कस्बाई जीवन का खदबदाता हुआ यथार्थ रचती रही हैं। सुनो कबीर में वे अपनी इस चिर-परिचित जमीन में और गहरे धँसी हैं। यहाँ पर उस्मान, फेकू, मोनिका, मनोहर या पिंकी जैसे एकदम साधारण चरित्रों की स्वप्नशील पर यथार्थपरक दुनिया है। यहाँ पर मोनिका या पिंकी जैसी स्त्रियाँ हर व्यूह को तोड़ते हुए आगे बढ़ रही हैं। ये बराबर मनुष्य होना अपना हक मानते हुए एक सपना देखती हैं और इन्हें ऐसे साथी मिलते हैं जो इन सपनों के सहयात्री बनते हैं। मंच पर स्त्री भूमिकाएँ करने वाला फेकू अपने जीवन में एक खास तरह का पुरुष होने के स्टीरियोटाइप से दूर हो रहा है। ये एक ऐसी स्थिति है जिसकी वजह से उसका दाम्पत्य जीवन कुछ समय के लिए खतरे में जरूर आता है पर एक दिन उसकी पत्नी भी जानती है कि फेकू इस दुनिया के पुरुषों की तुलना में कितना ज्यादा मनुष्य और साथी है। एक पठनीय और जरूरी उपन्यास। 

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 112p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Soni Pandey

Author: Soni Pandey

सोनी पांडेय

सोनी पांडेय का जन्म 12 जुलाई, 1975 को उत्तर प्रदेश के जनपद मऊ नाथ भंजन में हुआ। पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर से हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर के बाद ‘निराला का कथा साहित्य : कथ्य और शिल्प’ विषय पर पी-एच.डी., बी.एड. और कथक डांस जूनियर डिप्लोमा भी­­ किया।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘बलमा जी का स्टूडियो’, ‘तीन लहरें’, ‘मोहपाश’ (कहानी-संग्रह); ‘मन की खुलती गिरहें’, ‘आखिरी प्रेम-पत्र’ (कविता-संग्रह); ‘निराला का कथा साहित्य : वस्तु और शिल्प’ (आलोचना); ‘उषाकिरण खान का कथा लोक’, ‘मैं और मेरे बचपन के दिन : लेखिकाओं के संस्मरणों पर केन्द्रित’ (सम्पादन)। कई कहानियों और कविताओं का बांग्ला, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू एवं नेपाली आदि भाषाओं में अनुवाद।

उन्हें ‘शीला सिद्धान्तकर सम्मान’, ‘अन्तरराष्ट्रीय सेतु कविता सम्मान’, ‘माँ धनपती देवी कथा सम्मान’, ‘संकल्प साहित्य सर्जना सम्मान’ तथा ‘यशपाल कथा सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

सम्प्रति : हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका ‘गाथान्तर’ का सम्पादन।

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