Shudron Ka Pracheen Itihas-Paper Back

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‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’ प्रख्यात इतिहासकार प्रो. रामशरण शर्मा की अत्यन्त मूल्यवान कृति है। शूद्रों की स्थिति को लेकर इससे पूर्व जो कार्य हुआ है, उसमें तटस्थ और तलस्पर्शी दृष्टि का प्राय: अभाव दिखाई देता है। ऐसे कार्य में कहीं ‘शूद्र’ शब्द के दार्शनिक आधार की व्याख्या–भर मिलती है, तो कहीं धर्मसूत्रों में शूद्रों के स्थान की; कहीं शूद्रों के ग़ुलाम नहीं होने को सिद्ध किया गया है, तो कहीं उनके उच्चवर्गीय होने को। कुछ अध्ययनों में प्राचीन भारत के श्रमशील वर्ग से सम्बद्ध सूचनाओं का संकलन–भर हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे अध्ययनों में विभिन्न परिस्थितियों में पैदा हुई उन पेचीदगियों की प्राय: उपेक्षा कर दी गई है, जिनके चलते शूद्र नामक श्रमजीवी वर्ग का निर्माण हुआ। कहना न होगा कि यह कृति उक्त तमाम एकांगिताओं अथवा प्राचीन भारतीय जीवन के पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करने की प्रकृति से मुक्त है। लेखक के शब्दों में कहें तो, ‘‘प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य प्राचीन भारत में शूद्रों की स्थिति का विस्तृत विवेचन करना मात्र नहीं, बल्कि उसके ऐसे आधुनिक विवरणों का मूल्यांकन करना भी है जो या तो अपर्याप्त आँकड़ों के आधार पर अथवा सुधारवादी या सुधारविरोधी भावनाओं से प्रेरित होकर लिखे गए हैं।’’

संक्षेप में, प्रो. शर्मा की यह कृति ऋग्वैदिक काल से लेकर क़रीब 500 ई. तक हुए शूद्रों के विकास को सुसंबद्ध तरीक़े से सामने रखती है। शूद्र चूँकि श्रमिक वर्ग के थे, अत: यहाँ उनकी आर्थिक स्थिति और उच्च वर्ग के साथ उनके समाजार्थिक रिश्तों के स्वरूप की पड़ताल के साथ–साथ दासों और अछूतों की उत्पत्ति एवं स्थिति की भी विस्तार से चर्चा की गई है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 338p
Price ₹399.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Ramsharan Sharma

Author: Ramsharan Sharma

रामशरण शर्मा

जन्म : 1 सितम्बर, 1920; बरौनी (बिहार)।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (लंदन); आरा, भागलपुर और पटना के कॉलेजों में प्राध्यापन (1959 तक), पटना विश्वविद्यालय में इतिहास के विभागाध्यक्ष (1958-73), पटना विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर (1959), दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर तथा विभागाध्यक्ष (1973-78), जवाहरलाल नेहरू फ़ेलोशिप (1969), भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष (1972-77), भारतीय इतिहास कांग्रेस के सभापति (1975-76), यूनेस्को की इंटरनेशनल एसोसिएशन फ़ॉर स्टडी ऑफ़ कल्चर्स ऑफ़ सेंट्रल एशिया के उपाध्यक्ष (1973-78), बम्‍बई एशियाटिक सोसायटी के 1983 के ‘कैंपवेल स्वर्णपदक’ से सम्मानित (नवम्बर, 1987), अनेक समितियों-आयोगों के सदस्य और भारतीय इतिहास अनुसन्‍धान परिषद के नेशनल फ़ैलो और सोशल साइंस प्रोबिंग्स के सम्‍पादक मंडल के अध्यक्ष भी रहे।

प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : ‘विश्व इतिहास की भूमिका’, ‘आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता’, ‘भारतीय सामंतवाद’, ‘प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ’, ‘प्राचीन भारत में भौतिक प्रगति एवं सामाजिक संरचनाएँ’, ‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’, ‘भारत के प्राचीन नगरों का पतन’, ‘पूर्व मध्यकालीन भारत का सामंती समाज और संस्कृति’।

हिन्दी और अंग्रेज़ी के अतिरिक्त प्रो. शर्मा की पुस्तकें अनेक भारतीय भाषाओं और जापानी, फ़्रांसीसी, जर्मन तथा रूसी आदि विदेशी भाषाओं में भी प्रकाशित हुई हैं।

निधन : 20 अगस्त, 2011

 

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