Shreshth Jatak Kathayen-Hard Back

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जातक कथाएँ भगवान बुद्ध के द्वारा समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर दिए गए उपदेशों पर आधारित कथारूप में संग्रह है।

जातक कथाएँ इन त्रिपिटकों से एक सुत्तपिटक में सन्निहित हैं। ये कथाएँ बौद्धधर्म की महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ हैं। इनमें गौतम बुद्ध के सैकड़ों पूर्व जन्मों की कथाएँ हैं। यहाँ वे बोधिसत्व कहे गए हैं। बोधिसत्व का अर्थ है पूर्ण बुद्धत्व की ओर बढ़ता व्यक्तित्व।

जातक कथाओं ने न केवल हमारे देश के परवर्ती कथा साहित्य जैसे ‘पंचतंत्र की कहानियाँ’, ‘हितोपदेश’, ‘कथासरित्‍सागर’ आदि को प्रभावित किया है, वरन् अनेक विदेशी कथाएँ; जैसे—‘ईसप की कहानियाँ’ तथा ‘अलिफ़ लैला के क़िस्से’ आदि भी इससे प्रभावित हुए हैं।

सरल भाषा में किन्तु मूल पाठ को ध्यान में रखते हुए आम लोगों तक इन्हें पहुँचाने के लिए लेखक ने इन्हें अपने शब्दों में लिखा है। इसके साथ ही शोधार्थियों और जिज्ञासु पाठकों के लिए भी यह इस अर्थ में उपयोगी है कि तत्कालीन समाज, राजनीति, राजपरिवार, सामान्य एवं निम्न वर्ग की स्थिति, नैतिकता, स्त्रियों के प्रति भावनाएँ, समाज में धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वास, इतिहास, भूगोल आदि का बोध भी होता है। इसके अतिरिक्त उस काल में समाज किस प्रकार बुद्ध के विचार से प्रभावित हो रहा था, राजाओं, रानियों तथा राजपरिवार के अन्य सदस्यों के मध्य बुद्ध की शिक्षा का क्या असर था, प्रव्रज्या लेने में लोगों की रुचि कितनी थी, बुद्ध के भिक्षुसंघ तथा भिक्षुणीसंघ की क्या स्थिति थी, भिक्षुगणों का स्वभाव कैसा था, शिक्षा के केन्द्र कहाँ और कैसे थे आदि के विषय में भी हमें इन कथाओं से तथ्य ज्ञात होते हैं।

विविध विषयों पर कही गई ये कथाएँ आज भी प्रासंगिक हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 304p
Price ₹800.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Shobha Nigam

Author: Shobha Nigam

शोभा निगम

डॉ. शोभा निगम ने 1970 में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान

प्राप्त करते हुये एम.ए. की उपाधि तथा इसी विश्वविद्यालय से सन् 1980 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। सन् 1973 में वे छतीसगढ़ महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र की व्याख्याता नियुक्त हुईं। तब से 2008

तक उन्‍होंने लगातार दर्शनशास्त्र का क़रीब 35 साल तक अध्यापन किया है। इस बीच वे इसी महाविद्यालय में रहते हुए प्रोफ़ेसर भी बनीं और फिर शासकीय महाविद्यालय, आरंग में प्राचार्य-पद का दायित्व निर्वहन करते हुए सन् 2010 में सेवानिवृत्त हुईं।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘पाश्चात्य दर्शन के सम्प्रदाय’, ‘श्रीमद्वाल्लभाचार्य : उनका शुद्धाद्वैत एवं पुष्टिमार्ग’, ‘नीतिदर्शन’, ‘आधुनिक पाश्चात्य दर्शन’, ‘भारतीय दर्शन’, ‘दर्शन, मानव और समाज’, ‘सुकरात : एक महात्मा’, ‘पाश्चात्यदर्शन का ऐतिहासिक सर्वेक्षण’, ‘अन्य पुरुष’, ‘व्यास-कथा’, ‘यूनानी दार्शनिक चिन्तन’, ‘सलीब पर टँगा एक मसीहा : ईसा’, ‘वाल्मीकि रामायण के पात्र’ आदि ।

सम्मान : ‘डालमिया पुरस्कार’, ‘वागीश्वरी पुरस्कार’ आदि।

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