Shastra-Santan-Hard Cover

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“कुरुक्षेत्र में दिन में ही रहो, बस! रात में वहाँ मत रहो। यदि तुम रात में वहाँ रहे तो दिन में जो देखोगे, ठीक उसका उलटा पाओगे।” ‘शस्त्र-सन्तान’ का यह सूत्र वाक्य—केवल ‘महाभारत’ (आरण्यक पर्व) तक ही सीमित नहीं है। अस्तित्व के तब से अब तक के महावृत्तान्त में यह गूँज रहा है और यह उसके अन्तर्विरोधों तथा दर्दनाक विडम्बना को एक झटके में उजागर करता है। क्या पता हम जो देख रहे हैं—अगले क्षण उसका अर्थ उलट जाए! यह नाटक निःशब्द रात्रि में गांधारी, शववाहक, शस्त्र संचयकर्ताओं और विलाप करती स्त्रियों के मद्धिम स्वरों से शुरू होकर एक ऐसी बीहड़ सांगीतिक रचना में परिवर्तित होता है, जहाँ करुणा के साथ शब्द और महारंग काक की आवाज़ें भी हैं। एक ऐसी सांगीतिक रचना जो खींचती है, रुलाती है और सत्य के काँटों से भरी मरुभूमि पर ढकेल देती है।

यह नाटक कुरुक्षेत्र की रातों के बहाने रक्त में ऊभ-चूभ विगत, वर्तमान, आगत की भी कथा है, जिसमें जटिल सम्बन्धों और सत्य के लिए संघर्षरत आत्माओं का पुनरुद्‌घाटन होता है।

बहुविदित महाआख्यान के बहाने ‘शस्त्र-सन्तान’ हिन्दी नाटक के इतिहास में समकालीन काव्य की भाषा के नाटकीय प्रक्षेपण का अप्रतिम उदाहरण है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Isbn 10 8171192629
Publication Year 1997
Edition Year 1997, Ed. 1st
Pages 87p
Price ₹85.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Rameshwar Prem

Author: Rameshwar Prem

रामेश्वर प्रेम

जन्म : 3 अप्रैल, 1943; निर्मली, बिहार।

हिन्दी के बहुचर्चित नाटककार

प्रमुख नाट्य-कृतियाँ : ‘अजातघर’, ‘चारपाई’, ‘राजा नंगा है’, ‘कैम्प’, ‘अन्तरंग’, ‘शस्‍त्र-सन्‍तान’ (नाटक); ‘लोमड़ वेश’, ‘श्री श्रीगणेश महिमा’, ‘इलेक्ट्रा’, ‘बादशाह जोन्स’, ‘इफीजीनिया-इन-औलिस’, ‘बारहवीं रात’ (अनुवाद एवं नाट्य-रूपान्‍तरण); ‘बरफ़ की अरणियाँ’, ‘हनिर्गन्धा सुनो’ (कविता-संग्रह)।

कई नाटक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, भारत भवन रंगमंडल, संगीत नाटक अकादमी, मध्य प्रदेश कला परिषद आदि के विभिन्न समारोहों में प्रस्तुत। फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन की योजना के अन्तर्गत भारत भवन रंगमंडल के आवासीय नाटककार। भारत सरकार, संस्कृति विभाग के सीनियर फ़ेलो रहे।

सम्‍मान : ‘केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित।
निधन: 19 अगस्त, 2023

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